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________________ ५३२ ___ राजप्रश्नीयसूत्रे उभयतो बिब्बोकनम् उभयत उन्नतं मध्ये नतगम्भीरं सालिङ्गनवर्तिकम् गङ्गापुलिनवालुकाऽबदालसदृशं सुबिरचितरजस्त्राणम् उपचितक्षौमदुकूलपट्टप्रतिच्छादनम् आजिनक-रूत-बूर-नवनीत-तुलस्पर्शमृदुकं रक्तांशुकसंवृतं सुरम्यं प्रासादीयं यावत् प्रतिरूपम् ।। सू० ७७ ॥ उपधान इसके लोहिताक्ष रत्नमय हैं. (से णं सयणिज्जे सालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणं दुहओ उष्णए, मज्झे णयगंभीरे सालिंगनवट्टिए) यह शयनीय सालिङ्गनवर्तिक है-अर्थात्-शरीर के बराबर के उपधान से युक्त है. शिरोभाग में और चरणभाग में इसके दोनों ओर एक एक उपधानतकिया रखा हुआ है दोनों ओर वह उन्नत है. तथा बीच में-मध्यभाग में-नत-(नमा हुआ) हैं और इसी से यह गंभीर हैं (गंगापुलिणवालुया उद्दाल सालिसए सुविरइयरयत्तागे उवचियखोमदुगुल्लपडिच्छायणे, आईणग-रूयबूर-णवणीय-तुलफासमउए, रत्तं संबुए सुरम्भे, पासाईए जाव पडिरूवे) यह देवशयनीयगंगाकी बालुका के अबदाल जैसा है. रजोनिवारकपच्छादनवस्त्र से युक्त है. विशिष्टरूप से परिकर्मित (शोभित) क्षौमदुकूलपट्टरूप आच्छादन से यह सहित हैं. चर्ममयवस्त्र के रूइ के, बूर-वनस्पतिविशेष के नवनीत के, एवं कर्पास के स्पर्श जैसा इसका स्पर्श है. अतएव यह कोमल है मच्छरदानी इस पर तनी हुई है. बहुत ही सुन्दर है. प्रासादीय है, यावत् प्रतिरूप हैं । मनेसा . (से ण सयणिज्जे सालिंगणवट्टिए उभयो बिब्बोयणं दुहओ, उण्णए, मज्ज्ञे णयगंभीरे सालिंगनवट्टिए) मा शयनीय-सालिगवनात छे-मेट में भाસની લંબાઈ જેટલા ઉપધાન (ઓશીકા) થી યુક્ત છે એના શિરોભાગ અને ચરણભાગની તરફ એક એક ઓશીકું મૂકેલું છે તે બંને તરફ ઉન્નત છે તેમજ मध्यमा तत-(नभित) येथे तेथी ४ ते 'मी२ छ. (गंगापुलिणवालुया उद्दालसालिसए सुविरइयरयत्ताणे उवचिय खोमदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे, आइणग-रूप-वूर, णावणीय-तूलफासमउए, रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे पासाइए जाव पडिरूवे ) ॥ १शयનીય ગંગાની રેતીના અવદાલ સદશ છે. રજોનિવારક પ્રછાદનવસથી યુક્ત છે. વિશિષ્ટરૂપથી પરિકર્મિત ક્ષમદુકુલપટ્ટરૂપ આચ્છાદનથી યુક્ત છે, ચર્મમયવસ્રના, ३ना, मूरना-बनस्पति विशेषना, नवनातन (भाना ) भने पासना સ્પર્શ જેવો એને સ્પર્શ છે એથી એ કમળ છે, એની ઉપર મચ્છ૨દાની લગાવેલી છે એ બહુજ સુંદર છે, પ્રાસાદીય છે યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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