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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ६४ सूर्याभविमानवर्णनम् કર૭ प्रत्येकं पद्मवरवेदिकापरिक्षिप्ताः प्रत्येकं प्रत्येकं वनखण्डपरिक्षिप्ताः अप्येकिकाः आसवोदकाः अप्येकिकाः वारुणोदका अप्येकिकाः क्षीरोदका अप्येकिकाः घृतोदकाः अप्येकिकाः क्षोदोदकाः अप्येकिकाः प्रकृत्या उदकरसेन प्रज्ञप्ताः प्रासादीयाः दर्शनीयाः अभिरूपाः प्रतिरूपाः । तासां खलु वापीनां यावत् बिलपतिकानां प्रत्येकं प्रत्येक चतुर्दिशि चत्वारि त्रिसोपानप्रतिरूपकाणि प्रज्ञसानि तेषां खलु त्रिसोपानप्रतिरूपकाणाम् अयमेतद्रूपो वर्णावासः, प्रज्ञप्तः, तद्यथावज्रमयाः नेमाः यथा तोरणानां ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि च ज्ञातव्यानि । स. ६४ । कच्छपों से एवं अनेक पक्षियुगलों के इधर उधर के गमन से ये परिपूर्णव्याप्त हैं ( पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेदिकापरिक्खित्ताओ) ये प्रत्येक वापि आदि जलाशय पद्मवरवेदिका परिक्षिप्त हैं ( पत्तेयं २ वणसंडपरिक्खिताओ) तथा प्रत्येक वनषण्ड से परिक्षिप्त हैं ( अप्पेगइयाओ आसवोयगाओ, अप्पेगइयाओ वारुणोयगाओ अप्पेगइयाओ खीरोयगाओ, अप्पेगइयाओ घओयगाओ अप्पेपइयाओ खोदोयगाओ, अप्पेगइयाओ पगईए उयगरसेणं, पण्णत्ताओ) इनमें कितनेक वापी (वावडी) आदि जलाशय आसव के समान जलवाले हैं, कितनेक वारुण के समान जलवाले हैं. कितनेक क्षीर के समान जलवाले है, कितनेक घृत के समान जलवाले हैं, कितनेक इक्षुरस के समान जलवाले हैं, एवं कितनेक सामान्य जलवाले जल के जैसे जलवाले हैं। (पासाईयाओ, दरिसणिज्जाओ, अभिरूवाओ पडिरूवाओ) ये सब वापी आदि जलाशय प्रासादीय हैं, दर्शनीय हैं, और अभिरूप हैं प्रतिरूप है (तासि णं वावी ण जाव विलपंतियाणं पत्तेयं पत्तेयं चउदिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता) =छकच्छभअणेगसउणमिहुणगयविचारियाओ) मे भाम तम व्यास भ२७-४२७ थे। तभ०४ मन पक्षियुगसोना सामतेम गमनथी ते पूर्ण ३५थी व्याप्त छ. (पत्तेयं पत्तेय पउमबरवेदिका परिक्खित्ताओ) मे ४२३ ४२४ ११ पगेरे साशय ५५वर हाथी परिक्षित छ. (पत्तेयं २ वणसंडपरिक्खित्ताओ) तेम १ १३ १२४वन थी परिक्षित छे. (अप्पेगइयाओ आसवोयगाओ, अप्पेगइयाओ, वारुणोयगाओ, अप्पेगइयाओ खीरोयगाओ, अप्पेगइयाओ धओयगाओ, अप्पेगइयाओ खोदोयगाओ, अप्पेगइयाओ पगईए उयगरसेणं, पण्णत्ताओ) समानामा ८४ पाव वगेरे જલાશો આસવ જેવા પાણીથી યુકત છે, કેટલાક વા રુણના જેવા પાણી વાલા છે. કેટલાક શેરડીના રસ જેવા પાણીવાલા છે. અને કેટલાક સામાન્ય પાણી જેવા पाथीयुत छ. (पासाईयाओ, दरिसणिज्जाओ, अभिरुवाओ पडिरूवाओ ) से सब વાવ વગેરે જલાશ પ્રાસાદીય છે, દર્શનીય છે, અને અભિરૂપ છે. પ્રતિરૂપ છે. (तासि णं वावीण जाव बिलपतियाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाण શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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