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________________ ३८८ राजप्रश्नीयसूत्रे द्वे द्वे पुष्पपटलके यावत् लोमहस्तपटलके सर्वरत्नमये अच्छे यावत् प्रतिरूपे । तेषां खलु तोरणानां पुरतः द्वे द्वे सिंहासने प्रज्ञप्ते । तेषां खलु सिंहासनानां वर्णको यावत् दामानि । तेषां खलु तोरणानां पुरतः द्वे द्वे रूप्यमये छत्रे प्रज्ञप्ते । तानि खलु छत्राणि वैडूर्यविमलदण्डानि जाब्बूनदकर्णिकानि वज्रसन्धीनि मुक्ताजालपरिगतानि अष्टसहस्रवरकाश्चनशलाकानि दईरमलयजसुगन्धि सर्व ( सव्वरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ) ये सब चंगेरिकाएं सर्वथा रत्नमय हैं, निर्मल हैं यावत् प्रतिरूप हैं । ( तासु णं पुष्फचंगेरियासु जाव लोमहत्थंचंगेरियासु दो पुष्फपडलाइं जाव लोमहत्थपडलगाई सव्वरयणामयाई अच्छाई जाव पडिरूवाइं) इन पुप्पचंगेरिकाओं से लेकर लोमहस्तचंगेरिकाओं तक की सब चंगेरिकाओं के मुखों पर दो दो पुष्पपटलक-पुष्पमय आच्छादन विशेष कहे गये हैं। ये सब पटलक सर्वथा रत्नमय हैं, निर्मल हैं, यावत् प्रतिरूप हैं । (तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो सीहासणा पण्णत्ता) इन तोरणों के आगे दो दो सिंहासन कहे गये हैं (तेसिंणं सीहासणाणं वण्णओ जाव दामा) इन सिंहासनों की वर्णन पद्धति दामों (मालाओ) के वर्णन तक पहिले जैसी कही गई है वैसी जाननी चाहिये (तेसिणं तोरणाणं पुरओ दो दो रुप्पमया छत्ता पणत्ता) उन तोरणों के आगे दो दो रजतमय छत्र कहे गये हैं । (ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा, जंबूणयकन्निया, वरसंधी, मुत्ताजालपरिगया, अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा, छामे। मने सोम इस्तय गरिमा (छाया) ४३वाय छे. (सव्वरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिवारूओ) मा ५धी या२ि४ (छामे सर्वथा २त्नभय छे. नि छ यावत् प्रति३५ छ. ( तासु णं पुप्फचगेरियासु जाव लोमहत्थचगेरियासु दो पुप्फपडलाइं जाव लोमहत्थपडलगाई सव्वरयणामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाई) આ પુષ્પ ચંગેરિકાઓ (છા) થી માંડીને લેમહસ્ત ચંગેરિકાઓ (છા ) સુધીની સર્વ ચંગેરિકાઓ (છાબો) ના મેં પર બબ્બે પુષ્પ પટલક- પુષ્પથી બનેલા આચ્છાદન વિશેષ (ઢાંકણાઓ કહેવાય છે. આ બધા પાટક (ઢાંકણા) सवा २त्नभय छे. नि छ, यावत् प्रति३५ छे. (तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो सीहासणा पण्णत्ता) ते तार नी सामे मामे सिंहासन।४वाय छे. (तेसिं णं सीहासणाणं वण्णओ जाव दामा) ते सिंहासनानु न पहेली દામ (માળાઓ) ના વર્ણન સુધી પહેલાંની જેમજ સમજવું જોઈએ. (तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो रूपमया छत्ता पप्णत्ता ) ते तारणीनी सामे श्रीशन प्रश्नीय सूत्र:०१
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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