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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे प्रचलितवरकटकत्रुटितकेयूरमुकुटकुण्डलहारविराजमानरतिद वक्षाः प्रालम्बप्रप्रलम्बमानघोलद्भूषणधरः ससम्म्रम त्वरितं चपलं सुरवरः सिंहासनाद् अभ्युतिष्ठति, अभ्युत्थाय पादपीठात् प्रत्यवरोहति, प्रत्यवरुह्य पादुके अवमुञ्चति, अवमुच्य एकशाटिकमुत्तरासङ्गं करोति, कृत्वा सप्ताष्टपदानि तीर्थकराभिमुखम् अनुगच्छति, अनुगम्य वामं जानुं कर्षति, कृष्ट्वा दक्षिणं जानुं धरणितले आनन्द के मारे उछलने लगा (विकसियवर कमलणयणवयणे ) विकसित श्रेष्ठ कमल के जैसे दोनों नेत्र और मुख हो गये ( पयलियवर कडग तुडियकेऊरमउडकुंडलहारविरायंतरइयवच्छे ) इसके श्रेष्ठ कटक, त्रुटित, केयूर, मुकुट, कुण्डल, ये सब चंचल हो उठे, इसका वक्षःस्थल हार से चमकने लगा (पालंबपलंबमाण घोलंतभूसणधरे) इसका धारण किया गया लंबा लटकता हुआ कण्ठाभरण विशेष चंचल हो उठा, (ससंभमं तुरियं चवलं) इस तरह वह सूर्याभदेव बडी उत्कंठा के साथ बहुत ही जल्दी चञ्चल सा हो कर ( सीहासणाओ अब्भुट्टेइ ) सिंहासन से उठा (अब्भुट्टित्ता पायपीठाओ) उठकर वह पादपीठ से होकर ( पचोरुहइ ) नीचे उत्तरा (पचोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ) नीचे उत्तर कर उसने अपनी दोनों खडाउंओंको उतार दिया (ओमुइत्ता) एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ ) उतार कर उसने एकशाटिक उत्तरासङ्ग किया (करित्ता सत्तट्ठपयाई तित्थयराभिमुहं अणुगच्छइ) एकशाटिक उत्तरासङ्क करके फिर वह सात आठ पैर आगे जिस दिशा की ओर तीर्थकर प्रभु विराजमान भीसी युः, तेनु य मानने सीधे १८ लायु. (विकसिय घरकमल गयणवयणे ) भाता श्रेष्ठ माना २५i तेना नेत्र मन भुम गया. (पयलियवरकडगतुडियकेऊरमउडकुंडलहारविरायतरइयबच्छे) तेना श्रेष्ठ ४८, त्रुटित, यू२ મુકુટ, કુંડળ, હાર આ બધા ચંચળ થઈ ગયાં. તેનું વક્ષઃ સ્થળ હારથી પ્રકાશવા सायु. (पालंबपलबमाणधोलतभूसणधरे ) तेरो परेलु सामु मार्नु मास यय २७ गयु. (ससंभम तुरियं चवलं ) २मा प्रमाणे ते सूर्यास व तीन मलिसाथी प्रेरान ये ४६म श य य ७२ (सीहासणाओ अब्मुट्टेइ) सिंहासन 6५२थी असे था. (अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ) धने पापा ७५२ थी (पच्चोरुइइ) नाये अतो. (पच्चोरूहित्ता पाउयाओ ओमुयइ) नीचे उतरीन तेथे पोतानी ने पाहुयाने उतारी धी. (ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंग करेइ) तारी तेरे शा४ि उत्तरास ध्यो, ( करित्ता सत्तट्ठपयाई तित्थयराभिमुहं अणुगच्छइ) मे शाटि: उत्तरासरीने सातमा8 3ातीय ४२नी सोभे गये।,(अणुगच्छित्ता वाम શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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