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________________ सुबोधिनी टीका. सूर्याभस्यामलकल्पास्थितभगवद्वन्दनादिकम् सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणतमक्खयमव्वावाहमपुणरावित्तिं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अइगरस्स जाव संपाविउकामस्स, वंदाभि णं भगवंतं तस्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं तिकटु वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता सोहासणवरगए पुवाभिमुहं सण्णिसण्णे ।। सू०३।। छाया-तत्र खलु श्रमणं भगवन्तं महावीर जम्बू द्वीपे द्वीपे भारते वर्षे आमलकल्पायाः नगर्याः बहिः आम्रशालवने चैत्ये यथाप्रतिरूपम् अवग्रहम् अवगृह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयमानं पश्यति, दृष्ट्वा हृष्ट तुष्टचित्तानन्दितः प्रीतिमानाः परमसौमनस्यितः हर्षवशविसर्पद्धृदयः विकसितवरकमलनयनवदनः कर रहा था ॥ मू. २ ॥ 'तत्थ णं इत्यादि । सूत्रार्थ-(तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे ) उस समय उसने श्रमण भगवान महावीर को उस जंबूद्वीप नामके द्वीप में भरतक्षेत्र में (आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे पासइ) आमलकल्पा नगरी के बाहर आम्रशाल वन में यथा प्रतिरूप (यथाकल्प ) अवग्रह-(वनपाल की आज्ञा) को लेकर संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए देखा (पासिता हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए, पीइमणे, परमसोमणस्सिए, हरिसवसविसप्पमाणहियए ) देखकर वह हृष्टतुष्ट-अत्यन्त संतुष्ट हुआ, आनन्द से युक्त चित्तवाला हुआ, मन में बड़ी प्रीति लगी, इसका मन प्रसन्नता से ओतप्रोत हुआ हृदय 'तत्थणं इत्यादि । सूत्राथ—(तत्थंण समण भगवं महावीरं जबुद्दीवे दीवे भारहे वासे ) તે સમયે તેણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને તે જબૂદ્વીપ નામના દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં (आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं उग्गह उग्गिण्हित्ता संजमेंणं तवसा अप्पाण भावेमाणे पासइ) मा मस४८५ नगरीनी पा२ माशासवनमा यथा प्रति३५ (यथाकल्प) A-(वनसनी माज्ञी) ने सने सयम मने तपथी सामान सावित ४२॥ नया (पासित्ता हट्टतुदृचित्तमाणदिए पीइमणे, परमसोमणस्सिए, हरिसबसविसप्पमाणहियए) नेन ते तुष्ट-मेटले पून સંતુષ્ટ થયે, આનંદિત થયે, તેના હૃદયમાં પ્રેમ ઉત્પન્ન થયે, તેનું મન પ્રસન્નતાથી શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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