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राजप्रश्नीयसूत्रे
श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवादीत् - अहं खलु भदन्त ! सूर्याभो देवः किं भवसिद्धिकः अभवसिद्धिकः ? सम्यग्दृष्टिः मिथ्यादृष्टिः १ परीतसंसारिकः अनन्तसंसारिकः ?, सुलभबोधिकः दुर्लभबोधकः ? आराधको विराधकः ?, चरमोऽचरमः ? सूर्याभ ! इति श्रमणो भगवान महावीरः सूर्याभं देवमेवमवादीत् - सूर्याभ ! त्वं खलु भवसिद्धिको नो अभवसिद्धिकः ? यावत् चरमो नो अचरमः ॥ सू० ३१ ॥
rta भगवओ महारीरस्स अतिए धम्मं सोच्चा) श्रमण भगवान् महावीर से धर्मोपदेश सुनकर (निसम्म ) और उसे हृदय में अवधारण कर ( हट्ठतुङजाव हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठित्ता समणं भगवं महावीरं वंदर, नमसइ) हृष्ट हुआ यावत् तुष्ट हृदय वाला हुआ और फिर वह स्वयं अपनी उत्थानशक्ति से उठा-उठकर उसने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की नमस्कार किया. ( वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी) वन्दना नमस्कार कर वह फिर उनसे इस प्रकार कहने लगा- पूछने लगा ( अहं णं भंते सूरिया देवे किं भवसिद्धिए अभवसिद्धिए ) हे भदन्त ! में सूर्याभदेव क्या भवसिद्धिक हूं अथवा अभवसिद्धिक हूँ ? (सम्मद्दिट्ठी मिच्छादिट्ठी) सम्यकदृष्टि हूं या मिथ्यादृष्टि हूं ? (परित्तसंसारिए अणत संसारिए) परीत संसारिक हूं ? या अनन्तसंसारिक हूं ? ( सुलभबोहिए दुल्लभबोहिए ) सुलभबोधिक हूँ ? या दुर्लबोधिक हूं ( आराहए विराहए ) आराधक हूं या विराधक हूँ ? ( चरिमे अचरिमे) चरम हूं या अचरम हूं ? ( सुरियामाइ समणे भगवं महावीरे सुरियामं देवं एवं वयासी) तब हे सूर्याभ इस प्रकार से सूर्याभ देव को संबोधित करके श्रमण भगवान् महावीर ने उस सूर्याभ देव से ऐसा कहा - ( सूरियाभा ! पासेथा धर्मोपदेश सांलणीने (निसम्म ) अने तेने हृध्यमां धारण अरीने (हट्ठ तुट्ट जाव हियए उट्ठाए, उट्ठेइ, उट्ठित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ ) ट થયા, યાવત્ તુ હૃદયવાળા થયા અને તે પેાતાની જ ઉત્થાનશક્તિ વડે ઊભેા यहने तेथे श्रमण भगवान महावीरने बंधन अने नमस्सार . ( वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी ) सने वहना तेभन नमस्कार हरीने तेश्रो श्रीने या प्रमाणे विनंती रतां पूछवा साग्यो है ( अहं णं भते सूरियाभे देवे किं भवसिद्धिए अभवसिद्धिए ) È लढत ! हुं सूर्यालद्वेव शुं लवसिद्धि छु } अलवसिद्धि४ ४ . ( सम्म - हिट्टी मिच्छादिट्ठी ) सभ्य दृष्टि छु मिथ्यादृष्टि १ (परीत संसारिए अनंत संसारिए) परीत सौंसारी छु } अनंत संसारि छु ? ( सुलभ बोहिए दुल्लभबोहिए ) सुसलमाघिउ छु ! हुसलमाधि४ ? ( आराहए विराहए ) आराध४ छु } विराध ४° ? ( चरिमे अचरिमे ) यरभे अयरभ छु ? ( सूरियाभाइ समणे भगवं महावीरे सूरियांभ
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૧