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________________ सुबोधिनी टीका. सू. २५ भगवद्वन्दनार्थ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था २१३ सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सोओ ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ॥ सू० २६ ॥ छाया-ततः खलु स सूर्याभो देवः तेन पश्चानीकपरिक्षिप्तेन वज्र मयवृत्तलष्टसंस्थितेन यावत् योजनसहस्रोच्छितेन महाऽतिमहता महेन्द्रध्वजेन पुरतः कृष्यमाणेन चतसृभिः सामानिकसाहस्रीमि यावत् षोडशभिः आत्मरक्षकदेवसाहस्रीभिः अन्यैश्च बहुभिः सूर्याभविमानवासिभि वैमानिकै देवैर्देवीभिश्च सार्द्ध संपरिवृतः सर्वद्धर्था यावत् रवेण सौधर्मस्य कल्पस्य मध्यमध्येन ' तए णं से सरियामे देवे' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तए णं से सूरियामे देवे तेणं पंचाणीयपरिखित्तेणं) इस तरह वह सूर्याभदेव उस पंचानीक से परिक्षिप्त हुए ( महिंदज्झएणं ) महेन्द्र ध्वज से जो कि (वइरामयवट्टलट्ठसंठिएण जाव जोयणसहस्समूसिएणं महइ. महालएणं महिंदज्झएणं पुरओ कढिज्जमाणेणं ) वज्र का बना हुआ था. और जिसका आकार गोल एवं सुन्दर था यावत् जो एक हजार योजन की ऊँचाई वाला था और इसी कारण जो बहुत अधिक बृहत् था, एवं आगे ले जाया जा रहा था (चउहिं सामाणियसहस्सेहिं जाव सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिय बहूहिं सरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य सद्धि संपरिडे) तथा चार हजार सामानिक देवों से यावत् १६ हजार आत्मरक्षक देवों 'तए णं से सूरियाभे देवे' सूत्रार्थ-(तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिखित्तेणं) मा शते ते सूर्याम ते ५ यानीथीपरिक्षित थये। (महिंदल्झएणं) महेन्द्र थी रे (वइरामय वट्ठलट्ठसंठिएण जाव जोयणसहस्समृसिएणं महइमहालएणं महिंदज्ज्ञएणं पुरओ कढिज्जमाणेणं) 401 43 मनापामा मावो तो सन २नी माइति ગોળ અને સુંદર હતી યાવત જે એક હજાર યોજન જેટલી ઉંચાઈ વાળા હતા અને એથી તે બહુ જ વિશાળ હતો અને આગળ લઈ જવામાં આવી રહ્યો હતે. (चरहिं सामाणियसहस्सेहिं जाव सोलएहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वैमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे) तमा ચાર હજાર સામાનિક દેથી યાવત્ ૧૬ હજાર અંગ રક્ષક દેવાથી તેમજ બીજી શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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