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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे पादशीर्षकाणि. जाम्बूनदमयानि गात्राणि, वज्रमयाः सन्धयः नानामणिमय विच-मध्यभागं तत् खलु सिंहासनम् ईहामृगवृषभतुरगनरमकरविहगव्यालककिन्नररुरुसरभचमरकुअरवनलतापद्मलताभक्तिचित्रं सारसारोपचितमणीरत्नपादपीठम चौडाई में आठयोजनकी थी. तथा ऊँचाई में चार योजनकी थी. यह पूरी की पूरी मणियोंसे बनी हुई थी. आकाश एवं स्फटिकमणिके जैसी यह स्वच्छ थी. लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप थी. इसके बाद इस मणिपीठिका के ऊपर (एगं सीहासणं विउव्वइ) उसने एक विशाल सिंहासनकी विकुर्वणाकी (तस्स णं सीहासणस्स इमेयारूवे वण्णापासे पण्णत्ते ) उस सिंहासनका वर्णावास-वर्णन पद्धति इस प्रकारसे कहा गया है। (तवणिज्जमयाचकला) सिंहासनके जो चक्कल-चक्रल थे-अर्थात् सिंहासनके पाये जो नीचेके गोल आकारवाले अवयव विशेष थे. वे स्वर्णके बने हुए थे. (रययामया सीहा) इस पर जो सिंहोंकी प्रतिकृति थी. वह चांदीकी बनी हुई थी. (सोवण्णिया पाया) सिंहासनके जो पाये थे वे सुवर्णनिर्मित थे. (णाणामणिया पायसीसगाई) नानामणियोंके बने हुए पादशीर्षक थे. (जंबूणयमयाई गत्ताई) इसके पार्श्वगत अवयव विशिष्ट सुवर्णमय थे (वइरामया संधी) सन्धानस्थान वज्रके बने हुए थे ( णाणामणिमये विच्चे ) इसका मध्यभाग अनेक मणियोंसे युक्त था. (सेणं सीहासणे ईहामियउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररुरुसरभचमरकुजर वणलयपउमलयमतिचित्तं) यह सिंहासन ईहामृग, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मकर હતી. તે સંપૂર્ણ મણિઓથી બનેલી હતી આકાશ તેમજ સ્ફટિક મણિના જેવી તે સ્વચ્છ હતી, લક્ષણ હતી યાવત્ પ્રતિરૂપ હતી. ત્યાર પછી તે મણિ पानी ७५२ ( एगं सीहामणं विउव्वइ) तेरी मे विशण सिंहासननी विधु । ४१ ( तस्स गं सीहासणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते)ते सिंहासनन। वन । प्रभारी छ. ( तवणिज्जमया चक्कला) सिंहासनना २ यस-यही એટલે કે સિંહાસનના પાયા જે નીચે ગોળ આકાર વાળા અવયવ વિશેષ હતા તે सोनाना पाता ( रययामया सीहा ) तेनी ७५२ रे सिंहानी प्रतिकृति (तरेसी माति ) ती ते याहीनी भनेसी ती. (सोवण्णिया पाया) सिंहासनाना पाया ता ते सोनाना मनेता ता. (णाणामणि मथाई पाय सीसगाई) भने मणिमानी मनेसा ५॥ भूपवाना पाहशीष । (५१ भू४ानु सासन विशेष) ता, (जबू णयमयाई गत्ताइ) तेनी पावणा अवयव विशेष सोनाना ता. (वइरामयासंधी)सन्धान स्थान-सधी माम-हीरामाना मने उता. ( णाणा मणिमयेविच्चे) ते मध्य मा भने मणियोथी युत sal. (सेणं सीहासणे इहामिय उसभ तुरग नर मकर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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