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________________ सुबोधिनी टीका. सू. १८ भगवद्वन्दनार्थ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था १५९ ल्लिकापुटानां वा केतकीपुपुटानां वा पाटलीपुटानों वा नवमल्लिकापुटानां वा अगुरुपुटानां वा लवङ्गपुटानां वा कर्पूरपुटानां वा वासपुटानां वा अनुवाते वा उद्भिद्यमानानां वा कुटयमानानां वा भज्यमानानां बा उत्कीर्यमाणानां वा विकीर्यमाणानां वा परिभुज्यमानानां वा परिभाज्यमानानां वा भाण्डात् वा भाण्ड संहियमाणानां वा उदाराः मनोज्ञाः मनोहराः घ्राणमनोनिवृतिकराः सर्वतः समन्तात् गन्धा, अमिनिःस्रवन्ति, भवेद् एतद्रूपः स्यात् ? नो अयमर्थःसमर्थः, ते स्खलु मणयः इत इष्टतरका एव गन्धेन प्रज्ञप्ताः ॥ सू० १८ ॥ पुष्प के पुटका ( जुहियापुडाण वा) यूथिका पुष्प के पुट का, ( मल्लियापुडाण वा) मल्लिका पुष्प के पुट का (हाणमल्लियापुडाण वा) स्नानमल्लिकापुट का (केतगिवुडाण वा) केतकी पुष्प के पुट का ( पाडलिपुडाण वा) पाटलपुष्प के पुट का (णो मल्लियापुडाण वा ) नवमल्लिका के पुटका (अगुरुपुडाण वा) अगुरु के पुट का (लवंगपुडाण वा) लवंग के पुटका (कप्पूरपुडाण वा) कपूर के पुट का, (वासपुडाण वा) वासके पुट का (अणुवायंसि वा ओभिजमाणाण वा, कुट्टिज्जमाणाण वा भजिज्जमाणाण वा) अनुकूल वायु के चलने पर उनकी उद्भिद्यमान अवस्था में, कुटयमान अवस्था में, भज्यमान अवस्था में ( उकिरिज्जमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा परिभाइज्जमाणाण वा ) उत्कीर्यमाण अवस्था में, विकीयमाण अवस्था में, परिभुज्यमान अवस्था में. परिभाज्यमान अवस्था में, अथवा एक भाण्ड से दूसरे भाण्ड में ले जाने की अवस्था में ( ओराला, onld Y०५ना घुटना ( जुहिया पुडाण वा) यूथि४। पुयना पुटना ( मल्लिया पुडाण वा ) मवि ५०५ना घुटना ( हाणमल्लियापुडाण वा) स्नान महिला घटना (केतगिपुडाण वा ) ती पु०५ना पुटने। (पाडलिपुडाण वा) पाट पुन घटना (णो मल्लियापुडाण वा) नवमाता (यमेडी) - Yटना, ( अगुरुपुडाण वा) पशु३ना टन(लवंगपुडाण वा) aal Yटना, (कम्पूरपुडाण वा) पूरना Yटना, (वासपुडाण वा) वासना घुटनी, (अणुवायंसि वा अभिज्जमा णाण वा, कुट्टिज्जमाणाण वा भंजिज्जमाणाण वा ) अनुस ५वन वा दाणे ત્યારે તેમની ઉદ્દભિમાન અવસ્થામાં, કુટયમાન અવસ્થામાં, ભજ્યમાન અવસ્થામાં (उकिरिज्जमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा परिभाइज्जमा. णाण वा ) असीय भाए। अवस्थामा, विकीय भाए। अवस्थामा, परिमुल्यमान अq. સ્થાનમાં, પરિભાજ્યમાન અવસ્થામાં, અથવા એક પાત્રથી બીજા પાત્રોમાં લઈ पानी मस्यामा (ओराला, मणुण्णा मणहरा, घाणमणणिव्वुइकरा सव्वओ समंता શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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