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________________ १४४ राजप्रश्नीयसूत्रे मिति वा अञ्जनकेशिकाकुसुममिति वा नीलोत्पलमिति वा नीलाशोक इति वा नीलबन्धुजीव इति वा नीलकरवीर इति वा भवेद् एतद्रूपः स्यात् ? नो अयमर्थः समर्थः, खलु नीलामणयः इत इष्टतरका एव यावद् वर्णेन प्रज्ञप्ताः । तत्र खलु ये ते लोहितामणयस्तेषां खलु मणीनामयमेतद्रूपो वर्णा वासः प्रज्ञप्तः, तद् यथानामकः - उरभ्ररुधिरमिति वा शशरुधिरमिति वा नररुधिरमिति वा वराहरुधिरमिति वा महिषरुधिरमिति वा बालेन्द्रगोप इति वा बलादिवाकर इति वा सन्ध्याऽभ्रराग इति वा गुञ्जार्द्धराग इति वा जपाअंजणकेसिया कुसुमेइ वा, निलुप्पलेइ वा णीलासोगेइ वा णीलबंधुजीवेइ वा) मयूर की ग्रीवा होती है, अलसी का पुष्प होता है, वाणकुसुम होता है, अंजनकेशिकापुष्प होता हैं, नीलोत्पल होता है, नीलाशोकवृक्ष होता है, नीलबन्धु जीव होता है (णीलकणवीरेइ वा) अथवा-नीलकनेर का वृक्ष होता है इसी प्रकार का नीलमणि का नीलावर्ण होता हैं (भवेयारूवे सिया) भृगादि रूप वर्ण नीलमणियों का कदाचित् होता है ? (णो इणढे सम8) यह अर्थ समर्थ नहीं है ( तेणं णीला मणी इत्तो इट्टतरा चेव जाव वण्णेणं पण्णता) क्यों कि वे नीलमणि इनसे भी अधिक इष्ट ही यावत् वर्ण से कहे गये हैं। (तत्थ ण जे ते लोहियंगा मणी तेसिं णं मणी णं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते) तथा इन पांचवर्णवाले मणियों में जो लोहितवर्ण वाले मणि कहे गये है उनका यह इस प्रकार का वर्णावास कहा गया है-(से जहा णामए उरभरुहिरेइ वा ससरुहिरेइ वा, नररुहिरेइ वा, वराहरुहिरेइ वा. महिसरुहिरेइ वा, वालिंद. गोवेइ वा, बालदिवाकरेइ वा) जैसा लालरुधिर होता है, शशरुधिर होता है, मनुष्यरुधिर होता है, वराह रुधिर होता है, महिष रुधिर होता है, बालेन्द्रપુષ્પ હોય છે, નીલપલ હોય છે, નલા અશોક વૃક્ષ હોય છે. નીલબંધુ જીવ ।य छ, (णीलकणवीरेई वा ) अथवा तो नीसनेरनु वृक्ष लाय छ, तभ०४ नीस. मलिन। ५५१ नासो छ।य छे. ( भवेयारूवेसिया) मुंगा ३५१ नीलमणिसान। हायित ४ डाय छ ? (णो इणटे समद्धे ) २. म समय नथी-तेण णीलामणी इत्तो इदुतरा चेव जाव वण्णेणं पण्णत्ता) भते नीलमणिया मना ४२di ५ पधारे छट ४ यावत् वणवाणा वामां माया छे. ( तत्थ ण जे ते लोहियंगा मणी तेसिणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते) तभ०४ २मा पाय व भाडितવર્ણવાળા મણિઓ કહેવામાં આવ્યા છે તેમને આ પ્રમાણે રંગ બતાવવામાં माया छे. (से जहाणामए उरभरुहिरेइ वा, ससरुहिरेइ वा, नररुहिरेइ वा, वराहरुहिरेइ वा, महिसरुहिरेइ वा, बालिंदगोवेइ वा, बालदिवाकरेइ वा) २ લાલ રુધિર હોય છે, સસલાનું રુધિર હોય છે, માણસનું રુધિર હોય છે, વરાહ શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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