________________
पीयूवर्षिणी टीका. सू. ४ वृक्षवर्णनम.
__३१ त्ता अवाईणपत्ता अणईयपत्ता निय-जरढ-पंडु-पत्ता णव-हरियभिसंत-पत्तभारं-धयार-गंभीर - दरिसणिज्जा उवणिग्गय - णवतरुणसघनविशालतया प्रसारितपाणिभिः नरैर्दुहवतुलस्कन्धा इति यावत् । 'अच्छिदपत्ता' अछिद्रपत्राः-अच्छिद्रागि-सूर्यकिरणैरपि दुष्प्रवेशानि, पत्राणि येषां ते, परस्परमिलितदलाः। 'अविरलपत्ता' अविरलपत्राः-बहुलपत्राः। 'अवाईणपत्ता' अवाचीनपत्राः--अवाचीनानि-अधोमुखानि, पत्राणि येषां ते तथा । 'अणईयपत्ता' अनीतिकपत्राः--ईतयःषट्-अतिवृष्टिः, अनावृष्टिः, मूषकः, शलभः, खगः, दिग्विजयादौ प्रस्थितो भूत्वाऽतिनिकटसमागतो नृपश्चेति; अविद्यमाना ईतयो येषां तानि-अनीतिकानि निरुपद्रवाणि पत्राणि येषां ते तथा । —निधय-जरठ-पंडु-पत्ता' निर्दूत-जरठ-पाण्डु-पत्राःनि तानि-क्षिप्तानि, जरठानि-जीर्णानि, पाण्डूनि-परिणतानि-पीतानि, पत्राणि येषां ते तथा । 'णव-हरिय-भिसंत-पत्तभारं-धयार-गंभीर-दरिसणिज्जा' नव-हरित-भासमान-पत्रभाराऽसघन थे कि जिनके बीच में जरा भी अन्तराल नहीं था । (अविरलपत्ता) इसोलिये इनके पत्र दूर २ नहीं थे, बिलकुल पास २ में चिपके हुए जैसे थे। (अवाईणपत्ता) जितने भी पत्र इन वृक्षों में लगे हुए थे वे सब अधोमुख थे। (अणईयपत्ता) ये पत्र अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूषक, शलभ, पक्षी और राजा इन छह ईतियों-विपत्तियों से रहित थे। (निद्वय-जरठ-पंडु-पत्ता णव-हरिय-भिसंत-पत्तभारं-धयार-गंभीर-दरिसणिज्जा) इन वृक्षों से पुराने पत्ते, पीले पत्ते एवं सडे हुए पत्ते गिर गये थे, उनके स्थान पर नवीन हरे चमकीले पत्र आगये थे उससे वहां अन्धकार जैसा सदा व्याप्त हो रहा था । अतः इस हालत में 'ये वृक्ष ऐसे हैं । इस प्रकार लोकों के लिये इनका स्पष्टरीति से विवेचन करना अशक्य था। ( उवणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लव-को
मेटम घाट उतांनी वयमा ४२॥ ५४ मत२ न . (अविरलपत्ता) આમ તેમનાં પાંદડાં છેટે છેટે નહોતાં, બિલકુલ પાસે પાસે જ ચેટેલાં જેવાં
तi (अवाईणपत्ता) ये वृक्षामा खi iasi ani di ते या मधीभुम (नीय भुमi) तi. (अणईयपत्ता) २५isi -मतिवृष्टि, मनाવૃષ્ટિ, ઉંદર, શલભ (તીડ), પક્ષી અને રાજા એ છ ઈતિઓ-વિપત્તિઓથી २हित तi. (निद्भय-जरढ-पंडु-पत्ता णव-हरिय-भिसंत-पत्तभारं-धयार-गंभीर-दरिसणिज्जा) એ વૃક્ષ ઉપરથી જુનાં પાન, પીળાં પાન, તેમજ સડી ગયેલાં પાન પડી ગયાં હતાં અને તેમને ઠેકાણે નવાં લીલાં ચમકદાર પાન આવી ગયાં હતાં તેથી ત્યાં અંધકાર જેવું સદા વ્યાપ્ત થઈ રહ્યું હતું. આ પ્રમાણે આવી સ્થિતિમાં એ વૃક્ષે એવાં જ છે’ એ પ્રકારે સ્પષ્ટપણે વિવેચન કરવું લોકોને માટે