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________________ औपपातिक मूलम् -- कइसमए णं भंते! आउज्जीकरणे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते ॥ सू० ८२ ॥ ६७८ अकृत्वा खलु समुद्घातम्, अनन्ताः केवलिनो जिनाः । जरामरण विप्रमुक्ताः सिद्धिं वरगतिं गताः ॥ १ ॥ अयंभावः - षण्मासायुषि अवशिष्टे सति येषां केवलं ज्ञानमुत्पन्नं ते नियमतः समुद्घातं कुर्वन्ति, अन्ये तु समुद्धातं कुर्वन्ति न वा कुर्वन्तीति ॥ सू० ८१ ॥ टीका- गौतमः पृच्छति - 'कइसमए णं' इत्यादि । 'कइसमए णं भंते !' कतिसमयं खलु भदन्त ! 'आउजीकरणे पण्णत्ते' आवर्जीकरणं प्रज्ञप्तम् । आवर्ज्यतेऽभिमुखीक्रियते मोक्षोऽनेनेति-आवर्जस्तस्य करणविवक्षायां च्चिप्रत्ययः । केवलिसमुद्घातात् पूर्वं क्रिय नहीं है । क्योंकि (समुग्धायं अकित्ता) समुद्घात को नहीं भी करके ( अणंता केवली ) अनंत केवली (जिणा ) जिन ( जरामरणविष्यमुक्का ) जन्म, जरा एवं मरण से रहित होकर ( वरगईं ) सिद्धिस्वरूप सर्वोत्कृष्ट गति को प्राप्त हुए हैं । भावार्थ - जिनकी आयु ६ मास की बाकी बची है और अब उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ है तो ऐसी स्थिति में वे नियम से केवलिसमुद्घात करते हैं। बाकी के लिये ऐसा कोई नियम नहीं है कि समुद्घात करें ही ! ॥ सू. ८१ ॥ ' कइसमए णं भंते !' इत्यादि । प्रश्न - ( भंते! ) हे भदंत ! ( कइसमए णं आउज्जीकरणे पण्णत्ते ) मोक्षप्राप्ति का आवर्जीकरण कितने समय का होता है ! उत्तर - ( असंखेज्जसमए अंतोमुहुvिe पण्णत्ते) असंख्यात समय का अंतर्मुहूर्त कहा है। जिसके द्वारा जीव मोक्ष के अरे वो अर्ध नियम नथी; उभडे ( समुग्धायं अकित्ता ) समुद्घात न पशु रीने (अनंता केवली ) अनंत ठेवली ( जिणा ) नन ( जरामरणविष्पमुक्का) ४न्भु, ४रा तेभन भरणुथी रहित थर्धने ( वरगई ) सिद्धिस्व३५ सर्वोत्कृष्ट ગતિને પ્રાપ્ત થયા છે. ભાવા–જેમની આયુ છ માસ બાકી રહે છે અને હવે તેમને કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત થયું છે, તે એવી સ્થિતિમાં તેએ નિયમથી કેલિસમુદ્દાત કરે છે. બાકીને માટે એવા કેાઈ નિયમ નથી કે સમુધ્ધાત ५२ ४. ( सू. ८१ ) 6 'कइसमए णं भंते! त्याहि. प्रश्न - ( भंते ! ) डे लहन्त ! ( कइसमए णं आउज्जीकरणे पण्णत्ते ) भोक्ष प्राप्तिनुं भाव७४२ डेटला समयमां थाय छे. अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते ) असण्यात सभयनुं अंतर्मुहूर्त उत्तर - ( असंखेज्जसमए हेतु छे. नेना द्वारा
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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