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औपणतिकसत्रे क्खंति, पञ्चक्खित्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदंति, छेदित्ता जस्सहाए कीरइ नग्गभावे जाव अंतं करंति ॥ सू० ६६॥
मूलम्-जेसि पि य णं एगइयाणं णो केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ ते बहूइं वासाइं छउमत्थपरियागं पाउणंति, 'पाउणंति' पालयन्ति, 'पाणित्ता' पालयित्वा, ‘भत्तं पच्चक्रांति' भक्तं प्रत्याख्यान्ति, 'भत्तं पञ्चक्वित्ता' भक्तं प्रत्याख्याय 'बहूई' बहूनि 'भत्ताइं अणसणाए' भक्तानि अनशनया 'छेदंति' छिन्दन्ति, 'छेदित्ता' छित्त्वा ‘जस्सद्वाए । यस्मै अर्थाय 'कीरइ' क्रियते 'नग्गभावो' नग्नभावः आकिश्चन्यं क्रियते इत्यन्वयः, 'जाव अंतं' यावत्-सर्वदुःखनामन्तं करंति' कुर्वन्ति ॥ सू० ६६ ॥
'जेसि पि य णं' इत्यादि । 'जेसि पि य णं एगइयाणं णो केवलवरनाणदंसणे समुपज्जइ ' येषामपि च खलु एकेषां नो केवलवरज्ञानदर्शनं समुत्पद्यते= (पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खंति) इस पर्याय को प्राप्त कर वे भक्त का प्रत्याख्यान कर देते हैं । (पञ्चक्खित्ता बहुई भत्ताई अणसणाए छेदंति) प्रत्याख्यान करके अनेक भक्तों का अनशन द्वारा छेदन कर देते हैं । (छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव अंतं करेंति) छेदन करके जिस प्रयोजन के लिये नग्नभाव उन्होंने धारण किया था वे उस प्रयोजन को प्राप्त करते हैं, अर्थात् समस्त दुःखों का अंत करते हैं । सू. ६६ ॥
. 'जेसि पि य णं' इत्यादि। ___ (जेसि.पि य णं) इन साधुओं में से भी (एगइयाणं) जिन किन्हीं साधु मुनिराजों को (जो केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ) निर्मल केवलज्ञान एवं केवल दर्शन का १२सी सुधा मा पृथ्वीमने पावन ४२ छ. (पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खंति) मा पर्यायने प्रात ४शन सतप्रत्याभ्यान ४री हे छ. (पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदंति) प्रत्याध्यान ४शने मने मतोतुं मनशन द्वारा छेहन ४२ छ. (छेदित्ता जस्सद्वाए कीरइ नग्गभावे जाव अंत करेंति) छेदन કરીને જે પ્રયજન માટે નગ્નભાવ તેમણે ધારણ કરેલ હતું તે પ્રજનને पास ४२ छे, अर्थात् समस्त मानो मत ४२ छे. (सू. १६)
'जेसि पि य णं' त्याहि.
(जेसि पि य ण) PAL साधुमामाथी प (एगइयाणं) साधु मुनि. रामेन (णो केवलवरनाणदसणे समुप्पज्जइ)
निशान तेभर ३१