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औपपातिकसूत्रे
सुसीला सुव्वया सुपडियाणंदा साहू सव्वाओ पाणाड़वायाओ पडिविरया जाव सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया, सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ जाव मिच्छादंसणसल्लाओ
ऽनुसन्धेयः । सर्वेषां व्याख्याऽत्रैव द्विषष्टितमे सूत्रे गताः । नवरं - धर्मेणैव वृत्तिं कल्पयन्तः-निरवद्यभिक्षया संयमयात्रारूपां वृत्ति निर्वहन्तः इत्यर्थो बोध्यः । शेषपदानामपि व्याख्या तस्मिन्नेव सूत्रे कृताऽस्माभिः । 'मुसीला सुब्वया' सुशीलाः सुव्रताः 'सुपडियाणंदा' सुप्रत्यानन्दाः - सुष्ठु प्रत्यानन्दचित्ताहादो येषां ते तथा, आज्ञाविचयधर्मध्यानानन्दयुक्ताः साहू ' साधवः, ' सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जाव सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया' सर्वस्मात् प्राणातिपातात्प्रतिविरता यावत्सर्वस्मात् परिग्रहात्प्रतिविरताः, 'सव्वाओ कोहाओ माणाओ लोभाओ जाव मिच्छादंसण सल्लाओ पडिविरया ' सर्वस्मात् क्रोधान्मानान्मायाया लोभाद् यावन्मिथ्यादर्शनशल्यात्प्रतिविरताः, ' साओ आरं
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व्याख्या इसी उत्तरार्ध के बासठवें (६२) सूत्र में की जा चुकी है। (सुसीला) ये सुशील तथा (सुब्वया) निर्दोष रीति से व्रतों की आराधना करने वाले होते हैं । (सुपडियाणंदा) आज्ञाविचयनामक धर्मध्यान के ध्याने से इनका चित्त सदा अह्लादयुक्त बना रहता है। ये सब (सव्वा पाणावायाओ पडिविरया) सर्व प्रकार के प्राणातिपात से विरत रहते हैं, (जाव सव्त्राओ परिग्गहाओ पडिविरया) यावत् समस्त परिग्रह से विरक्त रहा करते हैं, (सव्वाओ कोहाओ) समस्त प्रकार के क्रोध से, (माणाओ) मान से, (मायाओ) माया से, (लोहाओ) लोभ से, (जाव मिच्छादंसणसल्लाओ) यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से, (डिविया) विरक्त रहा करते हैं, (सव्वाओ आरंभससमारंभाओ पडिरिया) समस्त
या आगमना उत्तरार्धना यास (१२) मां सूत्रमा वामां आवी छे. (नुसीला) सुशील तथा (सुव्वया) निर्दोष रीतिथी व्रतानी आराधना કરવાવાળ હોય छे. (सुपडियाणंदा) मज्ञावियय नामना धर्मध्यान व्याववाथी तेमनां थित्त सहा मान ही जवां रहे छे. ते मघा (सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरया) सर्व अमरना प्रातियातथी विरस्त रहे छे. (जाव सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया) तेभन समस्त परिग्रहथी विरक्त रह्या उरे छे. (सव्वाओ कोहाओ) समस्त प्रहारना डोधथी, (माणाओ ) भानथी, (मायाओ) भायाथी, (लोहाओ) बोलथी, (जाब मिच्छादंसण सल्लाओ ) तेभन मिथ्यादर्शन शक्ष्यथी (पडिविरया ) विस्त २ह्या रे छे. (सव्वाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया) समस्त आरंभसभा