________________
पोयूषवर्षिणी-टीका सू.६४ अनारम्भादिमनुष्यविषयेभगवद्गौतमयो:संवाद:६५५ ..मूलम् से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया • भवंति, तं जहा-अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया जाव कप्पेमाणा ... टीका–से जे इमे' इत्यादि । ' से जे इमे गमागर जाव सण्णिवेसेसु' अथ य इमे ग्रामाऽऽकर यावत् सन्निवेशेषु 'मणुया भवंति ' मनुजा भवन्ति, 'तं जहा' तद्यथा-'अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया जाव कप्पेमाणा' अनारभ्भाः अपरिप्रहा धार्मिका यावत् कल्पयन्तः, अत्र-यावच्छब्देन 'धम्माणुया, धम्मिट्ठा, धम्मक्खाई,धम्मप्पलोई, धम्मपलज्जणा, धम्मसमुदायारा, धम्मेणं चेव वित्तिं' धर्मानुगा धर्मिष्ठा धर्माख्यायिनो धर्मप्रलोकिनो धर्मप्ररञ्जना धर्मसमुदाचारा धर्मणैव वृत्तिम्-इति पाठो में उत्कृष्ट बाईस सागरोपम स्थिति कही गयी है । अवशिष्ट पहले के समान समझना चाहिये ॥ सू. ६३ ॥ . से जे इमे' इत्यादि ।
(से जे इमे) जो ये (गामागर जाव सण्णिवेसेसु) ग्राम आकर आदि निवास स्थानों से लेकर सन्निवेश तक के निवासस्थानों में (मणुया भवंति) मनुष्य निवास करते हैं और उनमें जो कई एक मनुष्य (साहू) साधु होते हैं वे (अणारंभा) आरंभ से रहित होते हैं, (अपरिग्गहा) परिग्रहवर्जित होते हैं, (धम्मिया) धार्मिक होते हैं, (जाव धम्मेणेव वित्तिं कप्पेमाणा) एवं निर्दोष भिक्षा से अपनी संयमयात्रा का निर्वाह करते हैं। यहाँ 'जाव' शब्द से “धम्माणुया, धम्मिट्ठा, धम्मक्खाई, धम्मपलोई, धम्मपलज्जणा, धम्मसमुदायारा, धम्मेणं चेव वित्तिं " इस पाठ का ग्रहण हुआ है । इसकी બાવીસ સાગરેપમ સ્થિતિ કહેવાય છે. બાકી બધું પહેલાં પ્રમાણે સમજવું न . (सू. १३)
से जे इमे' इत्यादि.
(से जे इमे ) तमोरे (गामागर जाव सण्णिवेसेसु ) म मा४२ मत निवासस्थानायी साधन सन्निवेश सुधीनां निवासस्थानामा (मणुया भवंति) मनुष्य निवास ४२ छ भने तभा २ मामे मनुष्य (साहू) साधु राय छ त। (अणारंभा) माथी २हित डाय छ, (अप्पपरिम्गहा) परिपात डाय छ, (धम्मिया) पनि य छे. (जाव धम्मेणेव वित्तिं कप्पेमाणा) मा निहोष-मिक्षा पोतानी संयमयात्रानो निवड ४२ छे. मडी 'जाप' शथी "धम्माणुया, धम्मिट्ठा, धम्मक्खाई, धम्मपलोई, धम्मपलज्जणा, धम्मसमुदायारा, धम्मेणं चेव वित्ति' मा पाइने अड ४२वामा मान्य छे. मानी व्याभ्या