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________________ पोयूषवर्षिणी टीका सू.६३ अल्पारम्भादिमनुष्य विषये भगवदगौतमयोःसंवादः६५३ समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणंओसहभेसजेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणा विहरंति, विहचतुर्दश्यादिषु तिथिषु 'पडिपुण्णं' प्रतिपूर्ण पोसह ' पोषधं, ' सम्म' सम्यक् 'अणुपालेत्ता' अनुपाल्यः ‘समणे निग्गंथे' श्रमणान् निर्ग्रन्थान् ‘फासुएसणिज्जेणं' प्रासुकैषणीयेन, 'असण-पाण-खाइम-साइमेणं' अशन-पान-खाद्य-स्वाद्येन, 'वत्यपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं' वस्त्रपतद्ग्रहकम्बलपादप्रोञ्छनेन, तत्र पतद्ग्रहः पात्रं, पादप्रोञ्छनं-रजोहरणम् , 'ओसहभेसज्जेणं' औषधभैषज्येन 'पाडिहारिएण य पीढफलग-सेजा-संथारएणं' प्रातिहारिकेण च पीठफलकशय्यासंस्तारकेग-तत्र पीठम् = आसनं, फलकम् अवष्टम्भनफलकं, शय्या वसतिः, यद्वा बृहत्संस्तारक;, संस्तारकः लघुतरः, एषां समाहारद्वन्द्वः, ततस्तेन, 'पडिलाभेमाणा' प्रतिलम्भयन्तः ददतः, 'विहरंति' का त्याग करना पोषधोपवास है; इस तरह बारह प्रकार के श्रावक धर्म को (सम्म अणुपालेत्ता) अच्छी तरह पालन करते हैं । (समणे निग्गंथे) श्रमणनिम्रन्थों को (फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं) प्रासुक-एषणीय अशन, पान, खाद्य तथा स्वाद्य ऐसे चारों प्रकार के आहारों से (वस्थ-परिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसहभेसज्जेणं) एवं वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण, औषध, (पाडिहारिएण य पीढफलगसेज्जासंथारएणं पडिलामेमाणा विहरंति) एवं प्रातिहारिक (पडिहारा) पीठ (बाजोट) फलक (पाट) शय्या (वसति) और संस्तारक आदि से, मुनियों को प्रतिलाभित करते हुए विचरते हैं, अर्थात् उन्हें इन पूर्वोक्त वस्तुओं को आवश्यकतानुसार प्रदान करते हैं, (विहरित्ता भत्तं ४२३॥ ते पोषधोपवास छ. २॥ शत मा२ ५४२i श्रा१४ भने ( सम्म अणुपालेत्ता) सारी ते पालन ४२ छ. (समणे निग्गंथे ) श्रम निर्थ थाने (फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइण-साइमेणं) प्रासु-मेषणीय मशन, पान, भाध तथा स्वाध सेवा न्यारेय प्रा२ना माहारथी, (वत्थ-परिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसहभेसज्जेणं) तेमन वस्त्र, पात्र, ५, २०२, मौषध, लेष४, (पाडिहारिएण य पीठ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणा विहरंति) तभ०४ प्रातिरि४ (पउिडा२१) पी8 (माले) ३१४-५८, शय्या (वसति) मने सस्ताરક આદિથી મુનિને પ્રતિલાભિત કરતા વિચરે છે, અર્થાત્ તેઓ આ ઉપર ४९सी वस्तुमाने मावश्या प्रमाणे महान ४रे छे. (विहरित्ता भत्तं पच्चक्रांति)
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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