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औपपातिकसूत्रे
निंदणाओ गरहणाओ तालणाओ तजणाओ परिभवणाओ पव्वणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहि''जारजातोऽसि' इत्यादिरूपा इत्यर्थः । ' खिसणाओ' खिंसना :- लोकसमक्षं ममद्घाटनम् 'निंदणाओं' निन्दनाः = मनसा जुगुप्साः, ' गरहणाओ ' गर्हणाः समक्षे क्रियमाणा जुगुप्साः, ' तालणाओ ' ताडनाः = चपेटादिदानानि, ' तज्जणाओ ' तर्जनाः = अङ्गुल्यादिप्रदर्शनपूर्वकं कटुवचनकथनानि, 'परिभवणाओ ' परिभावनास्तिरस्काराः, 'पव्वहणाओ ' प्रव्यथनाः = पीडोत्पादनाः, , उच्चावया उच्चावचाः = अनेकविधाः, ' गामकंटगा ' ग्रामकण्टकाः – ग्रामः समूहः, स चेन्द्रियाणामिह प्रकरणवशाद् गृह्यते, इन्द्रियाणां प्रतिकूलाः शब्दादय इत्यर्थः, ' बाबीसं परीसहोवसग्गा' द्वाविंशतिः परीषहोपसर्गाः ' अहियासिज्जंति ' अधिसहिष्यन्ते, 'तमट्ठमाराहित्ता' तमर्थमाराव्य = आत्मकल्याणरूपं तमर्थं साधयित्वा 'चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं ' चरमैरुच्छ्वासनिःश्वासैः ' सिज्झिहिति ' सेत्स्यति = के समक्ष अपने मर्मों के उद्घाटनों का, (जिंदणाओ ) अपने प्रति लोगों के मानसिक घृणाओं का, ( गरहणाओ) लोगों द्वारा प्रत्यक्षरूप से की गयी घृगाओं का. ( तालणाओ ) थप्पड़ आदि की ताड़ना का ( तज्जणाओ ) अंगुली - निर्देश - पूर्वक कह हुए कटु वचनों का, (परिभवणाओ ) तिरस्कारों का, ( पव्वहणाओ ) पीडाजनक परिस्थितियों का, ( उच्चावया ) अनेक प्रकार के, ( गामकंटगा ) इन्द्रियों के प्रतिकूल शब्दादिकों का, बावीस परीसहोवसग्गा) बाईस प्रकार के परीषहों का, एवं परकृत उपसर्गों का ( अहियासिज्जति) सहन किया जाता है, ( तमट्ठमाराहित्ता ) वे दृढप्रतिज्ञ केवली भगबान् उस आत्मकल्याण रूप अर्थ को आराधित करके (चरिमेहिं उस्सासणिस्सा सेहिं )
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દ્વારા થતી ખીજવણીનું-લેાકેા સમક્ષ પેાતાની માર્મિક વાર્તાને પ્રકાશ थाय तेनु', (जिंदणाओ) पोताना अति बडोनी मानसिङ घृणामानु, (गरहणाओ) बोअथी प्रत्यक्ष३ये ४येसी घृणामानु', ( तालणाओ ) थप्पड - साहियो भार भावानु', (तज्जणाओ) सांगली सीधीने उस उटु वचनानुं (परिभवणाओ) तिरस्थाशेनु', ( पव्वहणाओ ) पीडान परिस्थितिमेोनु, ( उच्चावया ) मने अारना ( गामकंटगा ) इंद्रियाने अतिज शब्द माहिनु, तथा ( बावीसं परीसहोवसग्गा) यावीस अझरना परीषोनु तेभन जीनसे रेखा उपसर्गोनु (अहियासिज्जंति) सडुन उराय छे. (तमट्ठमाराहित्ता) ते दृढप्रतिज्ञ ठेवली लगवान ते आत्म४या३य अर्थने आराधित उरीने (चरमेहिं उस्सास - णिस्सासेहिं) अन्तिम २छ्वास - निःश्वासोथी ( सिज्झिहिति) हृतछ्रुत्य थशे.