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________________ " पीयूषवर्षिणी- टीका सु. ५५ अम्बडपरिव्राजक विषये भगब्द् गौतमयोः संवादः ६२३ बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेजा फलहसेजा कट्ठसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं, परेहिं हीलणाओ खिसणाओ क्रियते, ' नग्गभावे ' नग्नभावः ' मुंडभावे ' मुण्डभावः, 'अण्हाणए ' अस्नानम् = स्नानवर्जनम्, 'अदंववणए' अदन्तधावनम् - दन्तधावनवर्जनम्, ' केसलोए ' केशलोचः केशानां लुश्चनम्, 'बंभचेरवासे' ब्रह्मचर्यवासः - ब्रह्मचर्यपालनं, ' अच्छत्तगं ' अच्छत्रकम् = छत्रधारणवर्जनम्, 'अणोवाहणगं' अनुपानत्कं = पादत्राणराहित्यं, अश्वशिबिकादिवाहनराहित्यं च, 'भूमिसेज्जा' भूमिशय्या, 'फलहसेज्जा' फलकशय्या, 'कट्ठसेज्जा' काष्ठशय्या, ' परघरपवेसो ' परगृहप्रवेशः - भिक्षाद्यर्थमित्यध्याहार्यमित्यर्थः ; 'लद्धावलद्धं' लब्धापलब्धम्सत्कारादिना लब्धं–लाभः - प्राप्तिः, अपलब्धम् - अपमानेन प्राप्तिः क्रियते इति पूर्वेण सम्बन्धः । तथा - ' परेहिं हीलणाओ ' परेषां हेलना:= अवज्ञाः - परकृता जन्मकर्ममर्मोद्घाटना:, यथाभाव, (मुंडभावे) मुण्डभाव, (अण्हाणए ) स्नान का परित्याग, ( अदंतवणए) दाँतो के प्रक्षालन करने का परित्याग, ( केसलोए) केशों का लोच करना, (बंभचेरवासे) ब्रह्मचर्य का पालन, ( अच्छत्तगं ) छत्र धारण नहीं करना, (अणोवाहणगं) विना जूतों के चलना, अश्व पर, शिबिका पर, वाहन पर नहीं बैठना, ( भूमिसेज्जा ) भूमि पर शयन करना, (फलहसेज्जा ) काष्ठ के पाटिये पर सोना, (कट्ठसेज्जा ) साधारण काष्ठ पर सोना, (परघरपवेसो) दूसरों के घर भिक्षावृत्ति के लिये जाना, (लद्धावलर्द्ध) मान और अपमान - पूर्वक प्राप्त भिक्षा में समभाव रखना, ये सब (कीरइ ) किये जाते हैं, और जिसके निमित्त ( परेहिं हीलणाओ ) परकृत अवज्ञाओं को - जैसे 'अरे ! तू जारजात (दोगला ) है' इस प्रकार के अनादर वचनों का, (खिसणाओ) लोगों के द्वारा खिजाने का -लोकों (नग्गभावे) नग्नलाव, (मुंडभावे) भुंउभाव, (अण्हाणए) स्नाननो परित्याग, ( अदंतवणए) हांतानु अक्षासन श्वानो परित्याग, (केसलोए) देशोनु सुन १२, (बंभचेरवासे) ब्रह्मचर्य पालन ४२वु, (अच्छत्तगं) छत्र धार न ४२, (अणोवाहणगं) लेडा पडेर्या विना व्यासवु, अश्वयर, शिमिडायर (पासणी ५२), वार्डन पर न मेसवु, (भूमिसेज्जा) लूभियर शयन ४२वु, (फलहसेज्जा) લાકડાંના पाटियां पर सुवु, (कट्ठसेज्जा) साधारण લાકડાં પર સુવું, (परघरपवेसो) मीलने घेर लिक्षावृत्ति भाटे ४वु, (लद्धावलद्धं) भानअपमानमां समभाव रामवो, मे मधु (कीरइ) ४२वामां आवे छे, भने लेना निभित्ते ( परेहिं हीलणाओ ) मालमे उरेसी अवज्ञाओ। नेवी 'अरे! तु' भरलत छे' मा अारनां मनाहरनां वन्यने।, (खिंसणाओ) बोना
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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