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________________ औपपातिक ६१८ मे इवा नलिइ वा सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरीए इवा महापोंडरीए इ वा यसपत्ते इवा सहस्सपत्ते इ वा सय सहस्सपत्ते इवा पंके जाए जले संबुड्ढे गोवलिप्पड़ पंकरणं, णोवलिप्पइ लम्, 'उप्पले इ वा' उत्पल - रक्तकमलम्, 'इवा' इति वाक्यालङ्कारे 'पउमे इ वा' पद्मम् - कमलमेव, 'कुसुमे इवा' कुसुमम्, 'नलिणे इ वा' नलिनम्, 'सुभगे इ वा' सुभगं - कमलविशेषः 'सुगंधे इवा' सुगन्धम् = सन्ध्याविकासिकमलविशेषः ; 'पौंडरीए इ वा' पुण्डरीकं श्वेतकम'महापोंडरीए इ वा' महापुण्डरीकं विशालं श्वेतकमलम्, 'सयपत्ते इ वा शतपत्रम् = कमलम्, 'सहस्सपत्ते इ वा' सहस्रपत्रम्, 'सयसहस्सपत्ते इ वा ' शतसहस्रपत्रम्, एतानि सर्वाणि कमलजातीयान्येव । एतत्प्रत्येकम् - 'पंके जाये' पङ्के जातम् - कर्दमे समुत्पन्नं 'जले संवुड्ढे ' जले संवृद्धम्, 'णोवलिप्पर पंकरएणं' नोपलिप्यते पङ्करजसा - पङ्कः कर्दमः स एव रजो रेणुतुल्यत्वात् तेन नोपलिप्यते = उपलिप्तं न भवतीत्यर्थः । 'णोवलिप्पइ जल " मए) जैसे ( उप्पले इ वा ) रक्त कमल, ( पउमे इ वा ) पद्मकमल (कुसुमे इ वा ) कुसुम - पुष्प, (नलिणे इ वा ) नलिन - कमलविशेष, ( सुभगे इ वा ) सुभग कमल, (सुगंधे इ वा ) सुगंधकमल - सन्ध्याकालविकासी सौगन्धिक कमल, ( पौंडरीए इ वा ) पुण्डरीक - श्वेतकमल, ( महापोंडरी ए इ वा ) महापुंडरीक - विशाल श्वेतकमल, ( सयपत्ते इ वा ) शतपत्र कमल, ( सहस्सपत्ते इ वा ) सहस्रपत्र कमल, (सयसहस्सपत्ते इ वा ) लक्षपत्र कमल, ये सब कमल की जातियां हैं । ( पंके जाए ) ये कीचड़ उत्पन्न होते हैं, (जले संवुड्ढे) तथा जल में बढते हैं, तो भी ( गोवलिप्पर पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं ) पंक की रज से वे लिप्त नहीं होते हैं और न जल की रज से-बिन्दुओं से लिप्त णामए) भडे (उप्पले इ वा) २४त भण, ( पउमे इवा) पद्म उभज, (कुसुमे इ वा ) सुभ-पुष्प, (नलिणे इ वा) नसिन-भणविशेष, (सुभगे इ.वा) सुलग भज, (सुगंधे इवा) सुगंध उमज - सध्या अणे विकास यामेतेषु सुगंधवाणु भण, (पोंडरीए इवा) पुंडरी४ - श्वेत उभ, (महापोंडरीए इ वा ) भडायु डरी-विशाजश्वेत (सयपत्ते इ वा ) शतयत्र भण, (सहस्सपत्ते इ वा ) सहस्रपत्र उभ (सयसहस्सपत्ते इ वा ) लक्षयत्र भण, थे अधी उभजनी लतियो छे. (पंके जाए) ते श्रीन्य मां उत्पन्न थाय छे, (जले संवुड्ढे) तथा सभां वधे छे, ते (णोवलिप पंकरएणं व णालिप्पइ जलरएणं) डीयडनी २४थी तेथे दिप्त थतां नथी, तेभन नसनां टीयांथी मे लिप्त थतां नथी, (एवामेव से दढप
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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