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पीयूषवर्षिणी-टीका सू. ४० अम्घडपरिव्राजकविषये भगवदगौतमयो संघादः ५९७ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववजिहिइ १ ॥ सू० ४०॥
___ मूलम्-गोयमा ! महाविदेहे वासे जाइं कुलाई लोगाओ' तस्माद्देवलोकात् 'आउक्खएणं' आयुःक्षयेण=देवसम्बन्ध्यायुःकर्मदलिकनिर्जरणेन, 'भवखएणं' भवक्षयेण=देवभवहेतुगत्यादिकर्मनिर्जरणेन, 'ठिइक्खएणं' स्थितिक्षयेण ब्रह्मलोके दशसागरोपमस्थितिक्षयेण 'अणंतरं' अनन्तरं चयं शरीरं 'चइत्ता' त्यक्त्वा, 'कहिं गच्छिहिइ' कुत्र गमिष्यति, 'कहिं उववजहिइ' कुत्रोत्पत्स्यते ? ॥ सू. ४० ॥
टीका-गौतमेन पृष्टः सन् भगवानाह-'गोयमा !' इत्यादि।
'गोयमा !' हे गौतम ! ' महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति' महाविदेहे वर्षे यानि कुलानि भवन्ति सन्ति, कानि तानि ? इत्याह-'अड्ढाई' आढयानि=समृद्धानि, देवलोगाओ) उस देवलोक से (आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं) आयु के क्षय-देवसंबंधी आयुकर्म के दलिकों की निर्जरा से, भव के क्षय-देवभव के हेतु गत्यादिक कर्म की निर्जरा से तथा स्थिति के क्षय-ब्रह्मलोक संबंधी १० सागर की स्थिति के समाप्त होने से (चयं चइत्ता) देवपर्याय से च्यवकर (अणंतरं) इसके बाद (कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिइ) कहां जायगा ? कहां उत्पन्न होगा ? ॥ सू. ४० ॥
'गोयमा! महाविदेहे वासे' इत्यादि ।
गौतमस्वामीने पूर्वोक्त प्रकार से जब प्रभु से पूछा तब उन्होंने कहा-(गोयमा) हे गौतम ! ( महाविदेहे वासे ) महाविदेह क्षेत्र मे (जाइं) जितने ( अड्ढाई दित्ताई वित्ताई) आढ्य-समृद्ध दीप्त-उज्ज्वल तथा प्रशंसित, एवं वित्त-प्रसिद्ध, (कुलाइं भवंति) (ताओ देवलोगाओ) ते पोथी (आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं) આયુને ક્ષય--દેવસંબંધી આયુકર્મલિકની નિર્જરાથી, ભવનો ક્ષય-દેવભવના હેતુ ગતિ આદિક કર્મની નિર્જરાથી તથા સ્થિતિને ક્ષય-બ્રહ્મલોક सधा श सा२नी स्थिति समास पाथी (चयं चइत्ता) पर्यायथी २युत थने (अणंतरं) त्या२ पछी (कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिइ ?) ४यां शे? जयां उत्पन्न थशे? (सू० ४०)
“ गोयमा ! महाविदेहे वासे” त्यादि.
गौतम ५२ ४ा मारे न्यारे प्रभुने पूछ्युं त्यारे तमामे -(गोयमा) 3 गौतम ! (महाविदेहे वासे) भविड क्षेत्रमा (जाई) २८॥ (अड्ढाई दित्ताई वित्ताई) माढय-समृद्ध, द्वीH-Sarvq तथा प्रशसित, तेभ वित्तप्रसिद्ध, (कुलाइं भवंति) पुणो छ. (वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणा-सण-जाण