________________
औपपातिकसूत्र झूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणवकैखमाणाणं विहरित्तएत्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयम? पडिसुणेति, पडिसुणित्ता तिदंडए य जाव एगंते एडेंति, एडित्ता गंगं महाणइं ओगाहेति, ओगाहित्ता वालुआसंथारए संथरंति, जुष्टानाम्--तपसा शरीरस्य कृशीकरणं संलेखना तया जुष्टानां सेवितानां-युक्तानाम , 'भत्तपाण-पडियाइक्खियाणं' भक्तपान-प्रत्याख्यातानाम् ' 'पाओवगयाणं' पादपोपगतानाम् छिन्नवृक्षवन्निष्पन्दतयाऽवस्थितानाम् , 'कालं अणवक खमाणाणं विहरित्तए त्ति कट्ट' कालमानवकाङ्क्षतां-मरणमनिच्छतां विहर्तुमिति कृत्वा, 'अण्णमण्णस्स अंतिए एयमद्वं पडिसुऐति' अन्योऽन्यस्याऽन्तिके एतमर्थ प्रतिशृण्वन्ति स्वीकुर्वन्ति, 'पडिसुणित्ता' प्रतिश्रुत्य 'तिदंडए य जाव एगंते एडेंति' त्रिदण्डकांश्च यावत् सर्वोपकरणानि एकान्ते त्यजन्ति, 'गंगं महाणइं ओगाहेति गङ्गां · महानदीमवगाहन्ते=अवतरन्ति, 'ओगाहित्ता' अवगाह्य=
(भत्तपाणपडियाइक्खियाणं) भक्तपान का प्रत्याख्यान कर (पाओवगयाणं) छिन्नवृक्ष की तरह निश्चेष्ट होते हुए (कालं अणवकंखमाणाणं) मरण की इच्छा से रहित होकर (संलेहणाझसियाणं विहरित्तए) संलेखनापूर्वक मरण को प्रेम के साथ सेवन करें। (त्तिकटु ) इस प्रकार विचारकर (अण्णमण्णस्स अंतिए एयमद्वं पडिमुणेति) उन लोगोंने इस निर्धारित बात को स्वीकार कर लिया, (पडिसुणित्ता) स्वीकार करने के बाद (तिदंडए य जाव एगते एडेंति ) फिर उन सबने अपने २ त्रिदंड आदि उपकरणों को एकान्त में परित्यक्त कर दिया, (एडित्ता गंगं महाणइं ओगाहेंति) परित्यक्त कर चुकने पर फिर वे सब के सब उस महानदी गंगा में प्रविष्ट हुए, ( ओगा.
संथा। पिछवीमे, मने तेना ५२ (भत्तपाण-पडियाइक्खियाणं) सतपानना प्रत्याध्यान रीने (पाओवगयाण) पाहपोमन संथा। रीने (कालं अणवस्खमाणाण) भनी ४२७ाथी २डित ने (संलेहणाझूसियाणं विहरित्तए) सखे मनापूर्व भ२- प्रेमथा सेवन ४२. (त्ति कट्ट) - ४२नो विया२ ४१ (अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिसुणेति) ते साये । निर्धा२ अरेसी पातना स्वी४२ ४३१ सीधे. (पडिसुणित्ता) स्वी४२ ४ा पछी (तिदंडए य जाव एगंते एडेंति) ते अधारी पातपाताना हि माहि ५४२णने सान्त स्थानमा परित्यत ४१ घi, (एडित्ता गंगं महनई ओगाहेंति) छोडी सीधा पछी ते