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पीयूषवर्षिणी-टीका स्र. २५ अम्बडपरिव्राजक शिष्याणां संस्तारकग्रहणम् ६५५
णियाओ य, करोडियाओ य, भिसियाओ य, छण्णालए य, अंकुस य, केसरियाओ य, पवित्तए य, गणेत्तियाओ य, छत्तए य, वाहणाओ य, पाउयाओ य, धाउरत्ताओ य एगंते एडित्ता, गंगं महाणई ओगाहिता, वालुयासंथारए संथरित्ता, संलेहणा
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य' करोटिकाश्च= मृण्मयभाजन विशेषान्, 'भिसियाओ य' वृषिकाश्च–उपवेशनपट्टिकाः, 'छष्णालए य' षण्णालिकानि च = त्रिकाष्ठिकाः, ' अंकुसर य ' अङ्कुशकांश्च-आकर्षणिकाः–वृक्षपल्लवाद्याकर्षण साधनविशेषान् देवार्चने पत्रपुष्पफलानां संग्रहार्थमङ्कुशका उपयुज्यन्ते; ‘केसरियाओ य ' केशरिकाश्च = प्रमार्जनार्थानि वस्त्रखण्डानि, ' पवित्तए य पवित्रकाणि= ताम्रमयमुद्रिकाः, 'गणेत्तियाओ य ' हस्तधार्या रुद्राक्षमालाः, ' गणेत्तिया इति हस्तधार्यरुद्राक्षमालार्थे देशीयशब्दः ; 'छत्तए य' छत्राणि च ' वाहणाओ य ' उपानहश्च, ' पाउयाओ य ' पादुकाश्च = काष्ठपादुकाः, ' धाउरत्ताओ य ' धातुरक्ताश्व = गैरिकोपरञ्जिताः, शाटिकाः = संन्यासिपरिधानीयवस्त्राणि, एतानि सर्वाणि ' एगंते एडिचा ' एकान्ते त्यक्त्वा, 'गंगं महाणई ओगाहित्ता' गङ्गामहानदीमवगाह्य गङ्गायां महानद्यामवतीर्थ- 'वालुया संथारए संथरित्ता' वालुकामंस्तारकान् संस्तीर्य, 'संलेहणाझूसियाणं' संलेखना
मिट्टी के बने हुए पात्रविशेषों को, वृषिकाओं - बैठने के पाटियों को, तिपाइयों को, देवों की पूजा के लिये पत्र - पुष्पादिकों के गिराने के वास्ते सदा पास में रहनेवाली छोटी सी अंकुशिका को, केशरिका को प्रमार्जन करने के काम में आनेवाले वस्त्र के खंडों को, तामे की सुंदरियों को, सुमरिनियों को, छत्रों को, जूतों को, काष्ठ की पादुकाओं को एवं गैरकधातु से रक्त पहिरने की धोतियों को एकान्त में छोड़कर महानदी गंगा को पारकर ( वालुया संथारए संथरित्ता ) उसके तट पर बालुका का संथारा बिछावें और उस पर
આદિ
માળાઓને, કરેાટિકાએ-માટીનાં બનેલાં પાત્ર વિશેષાને, વૃષિકાઓ--બેસવાના पाटसामने, त्रियार्धमाने (घाडीने), हेवाने पून निमित्त पत्र, पुण्य રાખવા માટે સદા પાસે રહેવાવાળી નાની સરખી અંકુશિકાને, કેશરિકાઓનેપ્રમાર્જન કરવાના કામમાં આવવાવાળા વજ્રના કટકાઓને, તાંબાની भुहरियाने, सुभरिनियोने, छत्रोने, भेडाने, साउडानी पाहु असोने, તેમજ ગેરૂ રંગેલાં પહેરવાનાં ધાતિયાંઓને એક ઠેકાણે રાખી દઈ ને भहानही गंगाने उतरीने ( वालुयासंथारए संथरित्ता ) तेना तट पर रेतीना