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________________ पीयूषवर्षिणी-टीका सू. ६ त्रसघातिनां नरकोपपातविषये प्रश्नः ५०७ __ मूलम्-जीवे णं भंते ! असंजए जाव एगंतसुत्ते उस्सण्ण-तस-पाण-घाई कालं किच्चा रइएसु उववज्जइ ?, हंता ! उववजइ ॥ सू० ६॥ मूलम्--जीवेणं भंते! असंजए अविरए अ-प्पडिहय-प टीका-अथोपपातं पृच्छति–'जीवे णं भंते ! ' इत्यादि । 'जीवे णं भंते !? जीवः खलु हे भदन्त ! 'असंजए जाव एगंतमुत्ते' असंयतो यावदेकान्तसुप्तः-प्राग्व्याख्यातः, 'उस्सण्ण-तस-पाण-घाई' प्रायस्त्रस-प्राण-घाती-'उस्सण्ण' इतिप्राःय== बाहुल्येन त्रसप्राणान्=त्रसप्राणिनो हन्ति तच्छीलः, 'कालमासे' मरणसमये, 'कालं किच्चा' कालं कृत्वा-मरणं विधाय, ‘णेरइएसु उववज्जइ' नैरयिकेषूत्पद्यते किम् ? इति प्रश्ने, उत्तरमाह भगवान्-'हंता ! उववज्जइ' हन्त ! उत्पद्यते नारकेषु जायते ॥ सू०६ ॥ टीका-'जीवे णं भंते' इत्यादि । 'जीवे णं भंते !' जीवः खलु हे 'जीवे णं भंते !' इत्यादि ! गौतम उपपात के विषय में पूछते हैं-(जीवे णं भंते ! असंजए जाव एगंतमुत्ते उस्सण्ण-तसपाण-घाई) हे भदंत ! वही पूर्वोक्त असंयम आदि अवस्था से लेकर सर्वथा मिथ्यात्वरूपी गाढनिद्रा में प्रसुप्त मिथ्यादृष्टि जीव जो बहुलता से त्रसजीवों की हिंसा करने में लवलीन रहा करता है वह (कालमासे) मृत्यु के समय में (कालं किच्चा) मर कर (णेरइएस) नारकियों में (उववजइ) उत्पन्न होता है क्या ? उत्तर-(हंता) हां गौतम ! (उववज्जइ) उत्पन्न होता है । सू. ६ ॥ 'जीवे णं भंते त्याहि. गौतम यातना विषयमा पूछे छ-(जीवेणं भंते ! असंजए जाव एगंतसुत्ते उस्सण्ण-तस-पाण-घाई) 3 Hd ! ५२ ४७८ मसयम मावि PA4સ્થાથી લઈને સર્વથા મિથ્યાત્વ રૂપી ગાઢનિદ્રામાં સુતેલ મિથ્યાદષ્ટિ જીવ જે धणे भरे। स वानी डिसा ४२पामा भन्थे। २९ छ, ते (कालमासे) भृत्युसमये (कालं किच्चा) भरीने (ोरइएस) ना२४ीमामा (उववज्जइ) उत्पन्न थाय छ ? उत्तर-(हंता) । गौतम ! (उववज्जइ) उत्पन्न थाय छे. (सू. ६)
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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