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पीयूषवर्षिणी टीका मु. ३ पापकर्मबन्धे गौतमप्रभः
५०३ हय-पञ्चक्खाय-पावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते पावकम्मं अण्हाइ १, हंता ! अण्हाइ ॥सू०३॥ तिरहितः, तथा-'अ-प्पडिहय-पच्चक वाय-पावकम्मे' अ-प्रतिहत-प्रत्याख्यात-पापकर्मा-प्रति हतानि अतीतकालकृतानि निन्दाद्वारेग, प्रत्याख्यातानि भविष्यत्कालभावीनि निवृत्तिद्वारेण, पापकर्माणि प्रागातिपातादिरूपाणि येन स प्रतिहत-प्रत्याख्यात-पापकर्मा, भूतभाविपापनिषेधाभावेन' यस्तथा न भवति सः-अ-प्रतिहत-प्रत्याख्यात-पापकर्मा, अतएव-'सकिरिए' सक्रियः कायिक्यादिक्रियायुक्तः, 'असंवुडे' असंवृतः अनिरुद्धेन्द्रियः, 'एगंतदंडे' एकान्तदण्डः-एकान्तेनैव= सर्वथैव दण्ड- यत्यात्मानं परं वा पापप्रवृत्तितो यः स एकान्तदण्डः, 'एगंतवाले' एकान्तबाल:-सर्वथा मिथ्यादृष्टिः, अतएव-'एगंतसुत्ते' एकान्तसुप्तः सर्वथा मिथ्यात्वनिद्रया प्रसुप्तः, 'पावकम्म' पापकर्म-प्राणातिपातादिकर्म 'अण्हाइ' आस्रवति बध्नाति किम् ?, भगवानाह'हंता अण्हाई' हन्ताऽऽस्रवति-हन्त इति स्वीकारे, आस्रवतिबध्नाति-इदमुत्तरवाक्यम् ॥सू०३॥ अनुष्ठान करने में लगा हुआ है, (अविरए) प्राणातिपातादिक से जिसने विरति धारण नहीं की है, तथा (अ-प्पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे ) लगे हुए पापकर्मों का निंदा द्वारा तथा भविष्यत् काल में बंधनेवाले पापकर्मों का प्रत्याख्यान-निवृत्ति द्वारा जिसने परित्याग नहीं किया है, (सकिरिए ) कायिकी आदि क्रियाओं से जो युक्त है, इसीलिये (असंवुडे) असंवृत-अनिरुद्धेन्द्रिय बना हुआ है, ( एगंतदंडे) अपने को अथवा परको जो पापमय प्रवृत्ति से दंडित-दुःखित करता रहता है, जो (एगंतबाले) एकान्तमिथ्यादृष्टि है और (एगंतसुत्ते ) सर्वथा मिथ्यात्व की निद्रा में गाढ सुप्त बना हुआ है, वह (पावकम्म) पापकर्म-प्राणातिपातादिक कर्मों का ( अण्हाइ) बन्ध करता है क्या ? तब भगवान् ने कहा, (हंता) हां गौतम ! ( अण्हाइ) बन्ध करता है। सर्व सावध मनुष्ठान ४२वामा तत्५२ २ छ, (अविरए) प्रातिपात माहि४थी रेणु विरति धा२१ ४२री नथी, तथा (अ-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे) લાગી રહેલાં પાપકર્મોનો નિંદા દ્વારા, તથા ભવિષ્ય કાળમાં બંધાનારાં પાપभनि। अत्याध्यान-निवृत्ति-द्वारा, गण परित्या ज्या नथा; (सकिरिए) यित्री माह जियामाथी र युत छ, तेथी (असंवुडे) मस वृत-मनिरुद्ध धादियोवा मन्या छ, (एगंतदंडे) पाताने अथवा ५२ने रे पापमय प्रवृत्तिथा डित-दु:मित ४ा ४२ छ सेवा ते (एगंतबाले) id मिथ्याष्टि (एगंतसुत्ते) सर्वथा भिथ्यात्पनी घोर निद्रामा सुतो छ, ते (पावकम्म) पाप
भ-. प्रातिपात माहि भेना (अण्हाइ) म ४२ छ ॐ शु? त्यारे लगवाने ४ह्यु-(हंता) है। गौतम ! (अण्हाइ) म छ..