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________________ औपपातिक सूत्रे जायको ऊहले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उपण्णको ऊहले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समु ५०० संशय इति भावः । ' जायकोऊहल्ले ' जातकुतूहल: - जातं कुतूहलम् - औत्सुक्यं यस्य स जातकुतूहल:, मत्कृतप्रश्नस्य कीदृशमुत्तरं भगवान् वक्ष्यति तच्छ्रोतुमौत्सुक्यवानित्यर्थः, ' उप्पण्णसड् ढे ' उत्पन्नश्रद्धः - उत्पन्ना - विशेषेण जाता श्रद्धा यस्य स तथा यद्वाश्रद्धायाः स्वरूपस्य तिरोहितत्वे जातश्रद्धः, तस्याः स्वरूपस्य प्रादुर्भावे तु उत्पन्नश्रद्धः - इति भावः । ' उप्पण्णसंसए' उत्पन्नसंशयः, 'उप्पण्णकोऊहल्ले ' उत्पन्नकुतूहल:, ' संजायसड्ढे ' संजातश्रद्धः, प्रकर्षादिवाचकः शब्दः, ततश्च संजाता = विशेषतरेण उत्पन्ना श्रद्धा यस्य स संजातश्रद्ध:, ' संजाय संसए' संजातसंशयः, 'संजायको ऊहल्ले : संजातकुतूहल:, ' समुप्पण्णसड्ढे ' समुत्पन्न श्रद्धः – समुत्पन्ना - सर्वथा संजाता श्रद्धा यस्य स तथा, , प्रश्न का उत्तर न मालूम किस तरह का देंगे ? इस बात को जानने को उत्कण्ठा उनके चित्त में बढ़ी क्यों कि ( उप्पण्णसड्ढे ) भगवान के ऊपर ही उनके चित्त में अतिशय श्रद्धा थी, अतः उनसे ही निर्णय करने के लिये श्रद्धा उत्पन्न हुई । ( उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले संजायसड् ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णको ऊहल्ले) उत्पन्न सय, उत्पन्नकौतुहल' - इत्यादि पदों द्वारा वाच्यार्थ में, अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ज्ञान की तरह उत्तरोत्तररूप से विशेषता द्योतन करने के लिए सूत्रकार 'जात, उत्पन्न, संजात, समुत्पन्न' इन पदों का प्रयोग किया है । भगवान् गौतम को जो चित्त में तत्त्व के निर्णय करने की इच्छा जागृत हुई वह पहिले सामान्यरूप में ही हुई, कारण कि उन्हें अंशय जो उत्पन्न हुआ था वह भी सामान्यरूप से ही हुआ था, इसी કેવી રીતે આપશે? એ વાતને જાણવાની ઉત્કંઠા તેમના ચિત્તમાં વધી; કેમકે (उप्पण्णसड्ढे) भगवानना उपर तेमना वित्तमां अतिशय श्रद्धा हुती, हवे तेभनी पाथी निर्णय वा भाटे श्रद्धा उत्पन्न यह (उत्पण्णसंसए उपष्णकोॠहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले समुप्पण्णसड्ढे समुण्णसंसए समुपणको हल्ले) ' उत्पन्नसंशय उत्पन्नाौतुहल' इत्याहि हो द्वारा વાગ્યામાં, અવગડુ, ઇહા, અવાય અને ધારણા જ્ઞાનની પેઠે ઉત્તરાત્તરરૂપથી विशेषताना प्राश साववाभाटे सूत्रारे 'जात उत्पन्न संजात समुत्पन्न' से होनो પ્રયાગ કર્યા છે. ભગવાન ગૌતમને જે ચિત્તમાં તત્ત્વના નિ ય કરવાની ઇચ્છા જાગ્રત થઈ તે પહેલાં સામાન્યરૂપમાં જ થઇ હતી. કારણ તેમને જે સંશય
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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