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________________ पोयूषवर्षिणो-टीका सु. ५६ अगार धर्मनिरूपणम्. ४७९ थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं २, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं ३, सदारसंतोसे ४, इच्छापरिमाणे ५। तिणि गुणव्वमुसावायाओ वेरमणं' स्थूलान्मृषावाद्विरमणम् स्थूलासत्यवचनकथनान्निवृत्तिः। “थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं' स्थूलाददत्तादानाद्विरमणम्-अदत्तस्य आदानं ग्रहणं तस्माद्विरमण निवृत्तिः ३ । 'सदारसंतोसे' स्वदारसन्तोषः परदारवेश्यादिवर्जनम् ॥४॥ 'इच्छापरिमाणे' इच्छापरिमाणः-इच्छायाः धनाद्यभिलाषरूपायाः परिमाणं-नियमनम्-इच्छापरिमाणम्-देशतः परिग्रहविरतिः, यद्वा-इच्छा परिग्राह्यवस्तुविषया वाञ्छा तस्याः परिमाणम् इयत्ता। इदमेतावदेव मया धार्यमुपार्जनीयं वेति नियमनमिच्छापरिमा गम् ॥५॥ 'तिष्णि गुणवयाइं त्रीणि तिपात से विरमण होना ही अहिंसा अणुव्रत है। (थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं) स्थूल मृषावाद से विरक्त होना-स्थूल असत्य वचनों के कहने से दूर रहना-सो स्थूलमृषावाद-विरमग अणुव्रत है । (थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं) स्थूल अदत्तादान से विरमण होना सो अचौर्य अणुव्रत है । (सदारसंतोसे) अपनी स्त्री में ही संतोष रखना-परदारा (परस्त्री) एवं वेश्या आदि का परित्याग कर देना-सो स्वदारसंतोष अणुव्रत है। (इच्छापरिमाणे) धन एवं धान्यादिक की अभिलाषा रूप इच्छा का प्रमाण करना-एक देशसे परिग्रह का त्याग करना, अथवा परिग्राह्यवस्तुविषयक वाञ्छा का नाम इच्छा है, इसका परिमाण इस प्रकार करना कि मैं अमुक वस्तु इतनी रखूगा, इतनी कमाऊँगा, इससे अधिक नहीं । यह इच्छापरिमाण नामका अणुव्रत है (तिण्णि गुणव्ययाई) गुणव्रत तीन हैं-ये गुणव्रत अणुव्रतों के थj थे ४ मडिसा माणुव्रत' छ. (थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं) स्थूल-भूषाવાદથી વિરક્ત થવું–શૂલ અસત્ય વચને કહેવાથી દૂર રહેવું તે “સ્કૂલ–મૃષાवाह-विरमा माधुव्रत' छे. (थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं) स्थूस महत्ताहानथी विरभ थj थे 'सयौर्य आशुव्रत' छे. (सदारसंतोसे) पातानी सीमा જ સંતેષ રાખવે-પરદારા-પરસ્ત્રી તેમજ વેશ્યા આદિને પરિત્યાગ કરી દેવો ते २१४॥२-सतोष माधुव्रत' छ. (इच्छापरिमाणे) घन तम धान्य माहिनी અભિલાષા રૂપ ઈચ્છાનું પ્રમાણ કરવું (હદ રાખવી)–દેશ થકી પરિગ્રહને ત્યાગ કરે. અથવા પરિગ્રહ કરવાની વસ્તુ બાબતની જે વાંછા તેનું નામ ઈચ્છા છે, તેનું પરિમાણ (માપ-મર્યાદા) આ પ્રકારે કરવું કે હું અમુક વસ્તુ આટલી રાખીશ, આટલી કમાઈશ, આથી વધારે નહિ. આ ઈચ્છાપરિમાણ નામનું અણુव्रत छ. (तिण्णि गुणव्वयाई) शुष्शबतष छ. २॥ शुष्णबत माशुव्रतानां 8५४१२४
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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