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पोयूषवर्षिणी-टीका सू. ५४ दूणिकस्य भगवद्पासना याए पज्जुवासइ, तंजहा-काइयाए वाइयाए माणसियाए । काइयाए-ताव संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ । वाइयाए-जं जं भगवं हाए पज्जुवासणयाए पज्जुवासइ' त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपास्ते-भगवतः पर्युपासनां विधत्ते, 'तंजहा' तद्यथा-तत् त्रिविधत्वं दर्शयति-'काइयाए वाइयाए माणसियाए' कायिक्या वाचिक्या मानसिक्या, पर्युपास्ते इति पूर्वेणान्वयः । तत्र कायिक्या पर्युपासनया तावत् ‘संकुइयग्गहत्थपाए' सङ्कुचिताऽग्रहस्तपादः, 'सुस्सूसमाणे' शुश्रूषमाणः= सेवमानः, ‘णमंसमाणे' नमस्यन्-अभिमुखे विनयेन प्राञ्जलिपुटः पर्युपास्ते, 'वाइयाएजं जं भगवं वागरेइ' वाचिक्या पर्युपासनया-यद् यद् भगवान् व्याकरोति व्याख्याति, त्रिविध पर्युपासना से उनकी उपासना की। वह त्रिविध उपासना इस प्रकार है-(काइयाए वाइयाए माणसियाए) काय से उपासना करना, वचन से उपासना करना एवं मन से उपासना करना। (काइयाए ताव) कायिक उपासना इस प्रकार से उसने की-(संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ) प्रभु के समीप वे हाथपावों को संकुचित करके उचित आसन से बैठे । उनसे धर्म सुनने की इच्छा करने लगे, उन्हें बारंबार नमस्कार करने लगे, पुनः नम्र होकर प्रभु के सम्मुख दोनों हाथों को जोड़ते हुए प्रभु की सेवा करने लगे । (वाइयाए) वचन से उपासना उन्होंने इस प्रकार की-(जं जं भगवं वागरेइ) जो जो भगवान् कहते थे, उस पर राजा इस प्रकार कहते थे, हे भगवान् ! (से जहेयं तुब्भे वदह) आप जैसा कहते हैं, (एवमेयं भंते!) हे नभ२४॥२ ४शन (तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ) विविध पर्युपासना तेमनी उपासन। ४. ते विविध उपासना मा प्ररे छ-(काइयाए वाइयाए माणसियाए) याथी पासना ४२वी, क्यनथी उपासना ४२वी तभ० भनथा उपासना ४२वी. (काइयाए ताव) यि उपासना तणे 41 रे ४री-(संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ) પ્રભુની પાસે તેઓ હાથ-પગને સંકુચિત કરીને ઉચિત આસન પર બેઠા. તેઓ પાસેથી ધર્મ સાંભળવાની ઈચ્છા કરવા લાગ્યા, તેમને વારંવાર નમસ્કાર કરવા લાગ્યા, અને નગ્ન થઈને પ્રભુના સન્મુખ બને હાથ જોડીને प्रभुनी सेवा ४२१॥ साया. (वाइयाए) क्यनथी तभणे या प्रमाणे उपासना ४२-(जं जं भगवं वागरेइ) २. लगवान ४ता ता ते ५२ २२० । मारे माता ता-डे मावान् ! (से जहेयं तुम्भे वदह) २।५ म ४ छ।