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________________ पीयूषयषिणो-टोका मृ. ४९ भगवदर्शनार्थ कूणिकस्य गमनम् ४१३ लिट्ठ-वत्त-मंडल-धुराणं आइण्ण-वर-तुरग-संपउत्ताणं कुसल-नरच्छेय-सारहि-सुसंपग्गहियाणं वत्तीस-तोण-परिमंडियाणं सकंकड़वडेंसगाणं सचाव-सर-पहरणा-वरण-भरिय-जुद्ध-सज्जाणं अहसयं वृत्तमण्डलधुरा गाम् । 'आइण्ण - वर - तुरग - संपउत्ताणं' आकीर्ण - वरतुरग-सम्प्रयुक्तानाम् – योजितोत्तमजातिमद्घोटकानाम्, 'कुसल-नर-च्छेय-सारदि-- सुसंपग्गहियाणं' कुशल-नर-च्छेक-सारथि सुसम्प्रगृहीतानाम्-कुशलनराः विज्ञपुरुषाः एव ये छेकाः निपुणाः सारथयः तैः सुसम्प्रगृहीतानाम् सञ्चारितानाम् । ' बत्तीस-तोरण-परिमंडियाणं' द्वात्रिंशत्तोरगपरिमण्डितानां-तोरणानि अर्धवर्तुलाऽऽकाराणि द्वाराणितैत्रिंशत्सङ्ग्यकैः तोरणैः वन्दनवारैः परिमण्डितानां, प्रतिरथं द्वात्रिंशद्वन्दनवाराणि सन्तीति भावः । 'सकंकडवडेंसगाणं' सकङ्कटाऽवतंसकानाम्-कङ्कटाः कवचाः, अवतंसकाः शिरस्त्राणानि 'टोप' इति प्रसिद्धाः, तैः युक्ताः सकङ्कटावतंसकाः तेषाम्-'सचावसर-पहरणा-वरण-भरिय-जुद्ध-सज्जानां' सचाप-शर-प्रहरणा-ऽऽवरण- भृत - युद्र-सज्जानाम्-चापैः सहिताः शराः, सचापशराः प्रहरणानि खड्गादीनि, आवरणानि='ढाल' (आइण्ण-चर-तुरग-संपउत्ताणं) इनमें जो घोड़े जोतने में आये थे वे बहुत ही उत्तम जाति के थे । (कुसल-नर-च्छेय-सारहि-सुसंपग्गहियाणं) इनके जो सारथी थे वे अश्वचालन क्रिया में विशेष निपुण थे । ये ही इन्हें चला रहे थे । (बत्तीस-तोरण-परिमंडियाणं) प्रत्येक रथों पर बत्तीस २ वन्दनबारें बंधी हुई थीं। (सकंकडवडेंसगाणं) इनमें कवच और शिरस्त्राग-लोहे के टोप भी रखे हुए थे । (सचाव-सर-पहरणा-वरणभरिय-जुद्ध-सज्जाणं) ये सब रथ चाप-धनुष, शर-बाण, प्रहरण-हथियार एवं आवरण-ढाल आदिकों से भरे हुए थे, अतः देखने वालों को ऐसे मालूम पड़ते थे कि मानो तेमनां घांस॥ पहुस भभूत तभ०४ गाण २।४।२नां तi. (आइण्णवरतुरगसंपउत्ताण) मा घोडा नेपामा माव्या ता ते पहु०४ उत्तम जतिना ता. (कुसल-वर-च्छेय-सारहि-सुसंपन्गहियाणं) तेना ने सारथी ता ते અશ્વસંચાલન કિયામાં વિશેષ નિપુણ હતા, તેઓજ તેમને ચલાવતા હતા. (बत्तीस-तोरण-परिमंडियाण) प्रत्ये४ स्थान। 8५२ मत्रीस मत्रीस पहनमाश माधी ती. (सकंकडवडेंसगाणं) तेमा ४५य मने शिश्ना-सोढाना ट।५ ५y राणेला उतi. (स-चाव-सर-पहरणा-वरण-भरिय-जुद्ध-सज्जाण) ये मया રથ ચાપ-ધનુષ, શર–બાણ, પ્રહરણ-હથિયાર તેમજ આવરણ – ઢાલ આદિથી
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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