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________________ ૪૦૨ ओपपातिकसूत्र मूलम्-तए णं तस्स कूणियस्स रणो भंभसारपुत्तस्स आभिसेकं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अदृह मंगलया पुरओ अहाणुपुत्वीए संपट्टिया, तंजहा-सोवत्थिय टीका-गजेन्द्राधिरूढो नरेन्द्रो भगवदभिमुखं यियासतीति तस्य पुरतः प्रयातम् अष्टमङ्गलादिपदात्यनीकान्तं कान्तं राजोचितवस्तुजातं वर्णयति-'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः तदनन्तरम्-सेनापतिसमानीतपट्टगजरत्नसमधिरोहणाऽनन्तरं 'तस्स कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेकं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स' तस्य कूणिकस्य राज्ञो भंभसारपुत्रस्याऽऽभिषेक्यं हस्तिरत्नमधिरूढस्य सतः 'तप्पढमयाए इमे अट्ठ मंगलया पुरओ अहाणुपुव्वीए संपद्विया' तत्प्रथमतया इमान्याष्टाष्ट मङ्गलानि पुरतो यथानुपूर्व्या संप्रस्थितानि, 'तंजहा'-तद्यथा-' सोवत्थिय-सिरिवच्छ-णदियावत्तवद्धमाणग-भदासण-कलस-मच्छ-दप्पणा'--सौवस्तिक-श्रीवत्स-नन्द्यावर्त -- वर्द्धमानक-भद्रासन-कलश-मत्स्य-दर्पणाः, तत्र-मस्यः-चित्रपटलिखितमत्स्यरूपः । एते 'तए णं तस्स कूणियस्स' इत्यादि । - (तए णं) इसके बाद (भंभसारपुत्तस्स) भंभसार अर्थात् श्रेणिक के पुत्र (तस्स कूलियस्स रणो) उस कूणिक राजा के (आभिसेकं हत्थिरयणं) आभिषेक्य हस्तिरत्न के ऊपर (दुरूढस्स समाणस्स) सबार होते ही (तप्पटमयाए) सर्वप्रथम उनके (पुरओ) आगे आगे (इमे अटू मंगलया अहाणुपुवीए संपद्रिया) ये आठ आठ मांगलिक द्रव्य अनुक्रम से संप्रतिष्ठित हुए-चलने लगे, (तं जहा) वे मांगलिक द्रव्य ये हैं, (सोवत्थिय-सिरिवच्छगंदियावत्त-बद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणा) स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण ! इनमें से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त " तए णं तस्स कूणियस्स” छत्यादि. (तए ण) त्यार पछी (भंभसारपुत्तस्स) समसा२ अर्थात् श्रेणिना पुत्र (तस्स कूणियस्स रण्णो) तेणि २ (आभिसे हस्थिरयणं) मालिषय स्ति२.नना ५२ (दुरूढस्स समाणस्स) सवार 23 rdi o४ (तप्पढमयाए) सर्वथा पडेसां तेमनी (पुरओ) मा मा (इमे अट्ठ मंगलया अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया) 2418 २४ भांजलि द्रव्य अनुभथी गोवामां माव्या, (तंजहा) ते भांजलि द्रव्य । तi. (सोवन्थिय-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-वद्धमाणगभद्दासण-कलस-मच्छ दप्पणा) १ स्वस्ति, २ श्रीवत्स, 3 नन्धावत', ४ वर्ष
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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