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पोयूषवर्षिणी-टीका सू. ४८ कूणिकस्य वस्त्रादि शरणम् कडग-तुडिय-थंभिय-भुए अहिय-रूव-सस्सिरीए मुद्दियापिंगलंगुलीए कुंडल-उज्जोविया-णणे मउड-दित्त-सिरए हारोत्थय
सुकय-रइय-वच्छे पालंब-पलंबमाण-पड-सुकय-उत्तरिजे णाणाततस्तयोः कर्मधारयः । यद्वा-पिनद्वानि यानि ग्रैवेयकागि अङ्गुलीयकानि च तैललिताङ्गकं, तत्र ललितं कृतमाभरगम्=अन्यद् भूषगजातं येन स तथा । 'वरकडग-तुडिय-थंभिय-भुए' वरकटक-त्रुटिक-स्तम्भित -- भुजः, वरकटकत्रुटिकैः श्रेष्ठवलयबाहुरक्षकाख्यैर्भूषणैर्भूषितबाहुः, 'अहिय-रूप-सस्सिरीए' अधिकरूपसश्रीकः-अधिकसौन्दर्येण शोभासम्पन्नः, 'मुद्दिया-पिंगलं-गुलीए' मुद्रिका-पिङ्गला-मुलीकः-मुद्रिकाभिः अङ्गुलीयकैः पिङ्गला अङ्गुल्यो यस्य स तथा, 'कुंडल उन्नोवियाणणे' कुण्डलोद्योतिताऽऽननः-कुण्डलदीत्या विद्योतितमुखः, 'मउड-दित्त-सिरए' मुकुट-दीप्त-शिरस्कः, 'हारो-स्थय-सुकयरइय-वच्छे' हारा-वस्तृत-सुकृत-रतिद-वक्षाः-हारेण अवस्तृतम् आच्छादितं सुकृतं= शोभनीकृतम् अतएव रतिदं दृष्टिसुखदं वक्षो यस्य स तथा, 'पालंब पलंबमाण-पडमुकय-उत्तरिज्जे' प्रालम्ब - प्रलम्बमान – पट -- सुकृतो - त्तरीयः - प्रालम्बेन-दीर्षण उचित और भी आभूषण धारण किये । (वर-कडग-तुडिय-थंभिय-मुए) दोनों हाथों में सुन्दर कड़े पहिरे एवं बाहुओं पर भुजबंध बांधे, (अहियख्वसस्सिरीए) इस प्रकार उनके शरीर की शोभा और भी अधिक द्विगुणित हो गई । (मुद्दिया-पिंगलं-गुलीए) उनने जो मुद्रिकाएँ अंगुलियों में पहिर रक्खी थीं उनसे उनकी अंगुलियां सब पीली झायीं से चमकने लगीं । (कुंडलउज्जोवियाणणे) कुण्डलों से मुख चमकने लगा। (मउड-दित्तसिरए) मुकुट से मस्तक शोभित होने लगा । (हारोत्थय-सुकय-रइय-बच्छे) हार से अच्छादित उनका वक्षस्थल बड़ा ही मनोहर मालूम होने लगा, अतः देखनेवालों को आनन्द होता था। (पालब-पलंबमाण-पड-सुकय-उत्तरिजे) अधिक लंबे वस्त्र का इनने माभूषण पा२१ ४ा. (वर-कडग-तुडिय--थंभिय-भुए) भन्ने हामी सुंदर ४i पर्या, तेभर माहुमा ५२ भुरा मांध्या. (अहिय-रूव-सस्सिरीए) २म
४ारे तन। शरीरनी शाला मई पधारे थ६ ६. (मुहिया-पिंगलं-गुलीए) તેમણે જે વીંટીઓ આંગળાંમાં પહેરી હતી તેનાથી તેમની બધી આંગળીઓ पीजी थी यमा al. (कुंडल-उज्जोविया-णणे) हुमाथी भुम यम४१दाज्यु. (मउड-दित्त-सिरए) भुटथी मस्त शासवा सायु. (हारोत्थय-सुकयरड्य-वच्छे) हारथी ये तनु वक्षस्थल (छाती) म भनाइ२ भातु