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________________ औपपातिकसूत्रे जाव-सण्णाहियं पासइ, सुभदापमुहाणं देवीणं पडिजाणाई उवट्ठवियाइं पासइ, चंपं णयरिं सभितर जाव गंधवहिभूयं कयं पासइ, पासित्ता हतुट्टचित्तमाणंदिए पीयमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 'रथ-प्रवरयोध-कलितां च चतुरङ्गिणी सेनाम्' इति दृश्यम् , 'सुभद्दापमुहाणं देवीणं' सुभद्राप्रमुखाणा-सुभद्रादीनां देवीनां 'पडिजाणाई उवट्ठवियाई' प्रतियानानि-शकटानि उपस्थापितानि पासइ' पश्यति, 'चंपं णयरिं सभितर जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ' चम्पां नगरी साऽभ्यन्तरां यावद् गन्धवर्तिभूतां कृतां पश्यति, दृष्ट्वा · हट्ठ-तु-चित्तमाणदिए ' हृष्टतुष्टचित्ताऽऽनन्दितः 'पीयमणे जाव हियए' प्रीतमना यावद् हृदयो 'जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते' यत्रैव कूणिको राजा भंभसारपुत्रः, 'तेणेव उवागच्छइ ' तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'करयल जाव एवं वयासी' पडिजाणाइं उवट्ठवियाई पासइ) सुभद्राप्रमुख देवियों के लिये आये हुए रथों को भी देखा। (चंपं णयरिं सभितर ज़ाब गंधवट्टिभूयं कयं पासइ) और यह भी देखा कि चंपानगरी भीतर बाहिर से अच्छी तरह से स्वच्छ हो चुकी है, एवं उससे सुगंधि की महक उठ रही है । (पासित्ता हट्ठ-तुट्ठ-चित्त-माणदिए पीयमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ) यह सब देखकर वह बहुत ही खुश हुआ हर्ष के मारे वह फूला नहीं समाया । प्रसन्न मन होकर वह शीघ्र ही जहां श्रेणिक के पुत्र कूणिक राजा थे वहां पहुँचा । (उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी) पहुँचकर उसने सर्वप्रथम राजा को दो हाथ जोडकर प्रणाम किया और सेनाने ५५ पासे ले. (सुभद्दापमुहाणं देवीणं पडिजाणाई उवद्ववियाई पासइ) सुभद्राप्रभुभ वासाने माटे आवेता रथाने ५५ लेया. (चंप णयरिं सभितर जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ) अने ये पायु , पानगरी અંદર અને બહારથી સારી રીતે સ્વચ્છ થઈ ગઈ છે, તેમજ તેમાંથી સુગંધીની म यादी २ड़ी छ. (पासित्ता हट्ठ-तुट्ठ-चित्त-माणदिए पीयमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ) मा मधुमेधने ते मई २४ ખુશ થય અને અત્યંત હર્ષિત થઈ ગયે. મન પ્રસન્ન થવાથી તુરત જ rयां श्रेणिना पुत्र लि४ २० ता त्या पडक्या. (वागच्छित्ता करयल जाव
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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