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________________ पोयूषवर्षिणो टोका सू. ४४ यानशालिकस्य बलव्यापृताऽऽदेशसंपादनम् ३८१ णाई अप्फालेइ, अफालित्ता दूसे पवीणेइ, पवीणित्ता वाहणाई समलंकरेइ, समलंकरित्ता वाहणाइं वरभंडगमंडियाइं करेइ,करिता वाहणाइं जाणाई जोएइ, जोइत्ता पओयलहिँ पओयधरए य नानि ‘णीणेइ' नयति बहिष्करोति, नीत्वा वाहनानि ‘अप्फालेइ ' आस्फालयति हस्तेन आस्फालयति, आस्फाल्य 'दुसे पवीणेई' दूष्यागि प्रविनयति आच्छादनवस्त्राण्यपनयति, प्रविनीय 'वाहणाई समलंकरेइ' वाहनानि समलङ्करोति, समलङ्कृत्य वाहनानि 'वरभंडगमंडियाइं करेइ' वरभाण्डकमण्डितानि करोति, कृत्वा 'वाहणाई जाणाई जोएइ' वाहनानि यानेषु योजयति, योजयित्वा यानशालिकः 'पओयलढेि' प्रतोदयष्टिं वाहनचालनार्थी यष्टिं 'पराणी' इति भाषाप्रसिद्धां 'पओयधरए य' प्रतोदधरान् = शकटवाहकान् समं युगपत्-एकस्मिन् काले 'आडहइ' आहरति एकस्मिन् स्थाने सवाक्खित्तादेखकर -(वाहणाई संपमज्जइ) उसने उन्हें साफ किया । (संपमज्जित्ता) साफ? सूफ कर (वाहणाई णीणेइ) वाहनों को उसने वहां से बाहिर निकाला, (णीणित्ता) बाहिर निकालकर (वाहणाई अप्फालेइ) उसने फिर उनके पीठ पर हाथ फिराया, (अप्फालित्ता) हाथ फिराकर (दूसे पवीणेइ) फिर उसने उनकी खोलियों को अलग किया । (पवीणित्ता) जब खोलियां उनकी अलग हो चुकी तब फिर उसने (वाहणाई समलंकरेइ) उन वाहनोंको शृगारित किया । (समलंकरित्ता) जब वे अच्छी तरह से सजा दिये गये तब (वाहणाइं वरभंडगमंडियाई करेइ) उसने उनको उपकरणों से मंडित किया, (करिता) करने के बाद (वाहणाइं जाणाई जोएइ) फिर उसने उन वाहनों-बैलों को रथों में जोते, (जोइत्ता) जोतने के बाद (पओयलढेि पओयधरए य समं आडहइ) उसने णाई संपमज्जइ ) तेणे तेभने सो ४ा. ( संपमज्जित्ता) सा-सू शने ( वाहणाई णीणेइ ) वाहनाने तो त्यांथी पा२ ४ढयां. (णीणित्ता) महार ४ाढीने (वाहणाइं अप्फालेइ) ते शने भनी पी3 3५२ डाय ३२०या. ( अप्फालित्ता ) डाय ३२वीने (दूसे पवीणेइ ) पछी तणे तेभनी जागाने ही ४री, (पवीणित्ता ) न्यारे गाणे तेमनी जुही ४२।। त्या२ पछी तेणे (वाहणाई समलंकरेइ) ते वाहनाने शार्या, (समलंकरित्ता) न्यारे ते सारी शते तैयार ( सक15) या त्यारे (वाहणाई वरभंडगमंडियाई करेइ) तेरी तेभने ५४२थी भरित ४ा. (करित्ता) ४ा पछी (वाहणाई जाणाई जाएइ) ते ते पाडनाना महोने कथामा डाव्यां, (जोइत्ता) डाव्यां पछी (पओयलट्ठि
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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