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पोयूषवर्षिणी-टीका सु. ३८ जनानां भगवदर्शनार्थ गमनम् मझेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेक उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठवेंति, ठवित्ता जाणवाहणेहिंतो पञ्चोरुहंति, पच्चोरुहिता जेणेव चम्पानगरी महाकोलाहलमयी कुर्वन्तः, 'चंपाए णयरीए' चम्पाया नगर्याः 'मज्झं-मज्झेणं' मध्यमध्येन-सर्वतो मध्यमार्गेण णिग्गच्छति'निर्गच्छन्ति,'णिग्गच्छित्ता'निर्गत्य'जेणेव पुण्णभद्दे चेइए' यत्रैव पूर्णभद्रं चैत्यम् , 'तेणेव उवागच्छंति' तत्रैवोपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य, 'समगस्स भगवओ महावीरस्स अदरसामंते ' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अदूरसमीपे-'छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासंति' छत्रादीन् तीर्थकरातिशेषान्=तीर्थकरातिशयदयोतकानि कानिचिच्छत्रादीनि चिहनानि पश्यन्ति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'जाणवाहणाइं ठवेंति' यानवाहनानि स्थापयन्ति, 'ठवित्ता' स्थापयित्वा 'जाणवाहणेहितो भित महासमुद्र के महाध्वनि से मानो युक्त करते हुए, (चंपाए णयरीए) उस चंपा नगरी के (मझमज्झणं) ठीक बीचो बीच के मार्ग से (णिगच्छंति) निकले, (णिग्गच्छित्ता) ये सब निकल कर ( जेणेव पुण्णभद्दे चेइए ) जहां पर वह पूर्णभद्र नामका उद्यान था (तेणेव उवागच्छंति) वहाँ पर पहुँचे, (उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासंति) वहाँ पहुँच कर उन्होंने भगवान् महावीर के न अतिदूर और न अतिनिकट तीर्थंकरों के अतिशय स्वरूप छत्र आदिकों को देखा, ये छत्रादिक तीर्थंकरों के अतिशय द्योतक चिह्न माने गये हैं; (पासित्ता जाणवाहणाई ठति) इन चिन्हों के देखते ही उन सबों ने अपने २ यानवाहनादिकों को वहीं रोक
प्रक्षुभित महासमुद्रनामावनिथीम युक्त ४२ता डाय तम (चंपाए जयरीए) ते या नगरानी (मज्झंमज्झेणं) ॥२५२ वच्यावश्यना माथी (णिगंच्छंति) नीच्या, (णिग्गच्छित्ता)ते या नीजीने (जेणेव पुण्णभद्दे चेइए) न्यांत पूलद्र नामनु जधान उतु (तेणेव उवागच्छंति) त्यां पडया, (उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासंति) त्यां पडांचीन तयार ભગવાન મહાવીરથી બહુ દૂર નહિ તેમ તીર્થકરેના અતિશયસ્વરૂપ છત્ર આદિને જોયાં, આ છત્ર આદિક તીર્થકરેના અતિશયદ્યોતક ચિહ્ન મનાય छ; (पासित्ता जाणवाहणाई ठवेंति) मे थिनीने तi ४ सांय पोत