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રૂકર
औपपातिकसूत्रे मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणंसमणस्स भगवओ महावीरस्स वेमाणियादेवा अंतियं पाउब्भवित्था, सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्सारा-णय-पाणया-रण
टीका-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि। तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य 'वेमाणिया देवा अंतियं पाउभवित्था' वैमानिका देवा अन्तिके प्रादुर्बभूवुः । के ते वैमानिका देवाः ? इत्याह-सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतय महामुक्क-सहस्सारा-णय-पाणया-रण-अञ्चयवई' सौधर्मे १-शान २-सनत्कुमार ३-माहेन्द्र ४, ब्रह्म ५-लान्तक ६-महाशुक्र ७-सहस्रारा-ऽऽनत ९-प्राणता १०ऽऽ-रणा११ च्युतपतयः १२, करते रहना यही इनका स्वभाव है। (पत्तेयं णामंक-पागडिय-चिंध-मउडा) प्रत्येक के मुकुट अपने अपने नामों से युक्त एवं स्पष्ट चिह्न वाले हैं । (महिड्ढिया) ये सब महाऋद्धि के धारी हैं। (जाव पज्जुवासंति) पूर्व में वर्णित असुरकुमारों की तरह ये सब ज्योतिषी देव भी भगवान् महावीर की सेवा करने लगे ॥ सू० ३६ ॥
'तेणं कालेणं' इत्यादि।
( तेणं कालेणं तेणं समएण) उस काल और उस समय में (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के (अंतियं) समीप (वेमाणिया देवा) वैमानिकदेव (पाउन्भवित्था) प्रकट हुए । वैमानिक देव कौन हैं ? सो कहते हैं-(सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्सारा-णयपाणया-रण-अच्चुय-चई) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक
त२ मन ४२॥ २२ से तमनो स्वभाव छ. (पत्तेयं णामंक-पागडियचिंध-मउडा) प्रत्येना भुट पोतपोतानां नाभाथी युद्धत सव २५ शिक्षा छ. (महिड्ढिया) से मचा महाऋद्धिना धा२४ छे. (जाव पज्जुवासंति) पूर्व ४९ અસુરકુમારની પેઠે આ બધા તિષીદેવ પણ ભગવાન મહાવીરની સેવા ४२वा साया. (सू०३९)
'तेणं कालेणं' ऽत्यादि.
(तेणं कालेणं तेणं समएण) ते स मने ते समयमा (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रम मापान भडावा२नी (अंतियं) पासे (वेमाणिया देवा) वैभानि: ५ (पाउन्भवित्था) प्रगट थया. ते वैमानि वा छान छ ? → ४ छ(सोहम्मी-साण-सणंकुमार-महिंद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्सारा-णय-पाणया-रण-अच्चुयवई) सौधर्म १, शान २, सनभा२ 3, भाडेन्द्र ४, प्रा४ ५, सन्त