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________________ श्री वीतरागाय नमः॥ श्री श्री श्री १००८ जैनधर्मदिवाकर जैनागमरत्नाकर श्रीमज्जैनाचार्य श्री पूज्य घासीलालजी महाराज चरणवन्दन स्वीकार हो । अपरश्च-समाचार यह है कि आपके भेजे हुए ९ शास्त्र मास्टर शोभालालजी के द्वारा प्राप्त हुए, एतदर्थ धन्यवाद ! आपश्रीजीने तो ऐसा कार्य किया है जो कि हजारों वर्षों से किसी भी स्थानकवासी जैनाचार्य ने नहीं किया । आपने स्थानकवासी जैनसमाज के ऊपर जो उपकार किया है वह कदापि भुलाया नहीं जा सकता और नहीं भुलाया जा सकेगा। ___हम तीनों मुनि भगवान महावीर से अथवा शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि आपकी इस वज्रमयी लेखनी को उत्तरोत्तर शक्ति प्रदान करें ता कि आप जैनसमाज के ऊपर और भी उपकार करते रहें, और आप चिरञ्जीव हो। हम हैं आप के मुनि तीन डदेपुर. मुनि सत्येन्द्रदेव-मुनि लखपतराय-मुनि पद्मसेन इतवारी बाजार नागपुर ता. १९-१२-५६ प्रखर विद्वान जैनाचार्य मुनिराज श्री घासीलालजी महाराज द्वारा जो आगमोद्धार हुआ और हो रहा है सचमुच महाराजश्री का यह स्तुत्य कार्य है । हमने प्रचारकजी के द्वारा नौ सूत्रों का सेट देखा और कई मार्मिक स्थलोंको पढा, पढकर विद्वान मुनिराजश्री की शुद्ध श्रद्धा तथा लेखनीके प्रति हार्दिक प्रसन्नता फूट पडी। ___ वास्तव में मुनिराजश्री जैनसमाज पर ही नहीं, इतर समाज पर भी महा उपकार कर रहे हैं । ज्ञान किसी एक समाज का नहीं होता है, वह सभी समाज की अनमोल निधि है, जिसे कठिन परिश्रम से तैयार कर जनता के सम्मुख रक्खा जा रहा है, जिसका एक एक सेट हर शहर गांव और घरघर में होना आवश्यक है । साहित्यरत्न मोहनमुनि सोहनमुनि जैन.
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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