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________________ ૨૨૨ ओपपातिकसूत्र २६, ओवणिहिए २७, परिमियपिंडवाइए २८, सुद्धेसणिए २९; संखादत्तिए ३०। से तं भिक्खायरिया ॥ सू. ३०॥ ।२७। 'परिमियपिंडवाइए' परिमितपिण्डपातिकः-परिमितपिण्डस्य - प्रमागोपेनपिण्डस्य पातो लाभः परिमितपिण्डपातः, सोऽस्यास्तीति परिमितपिण्डपातिकः-आधाकर्मादिदोषरहितं भक्तादिकमेकस्माद् गृहाद्यदि पर्याप्तं लभ्येत तदा ग्राह्यम्-इत्यभिग्रहवान् ।२८। 'सुद्धेसणिए' शुद्धैषणिकः-शुद्धैषणा-शङ्कादिदोषरहितता, शुद्धस्य-उद्गमादिदोषरहितस्य वा एषणा, साऽस्याऽस्तीति शुद्वैषणिकः, सर्वथा शुद्धमेव ग्राह्यमित्यभिग्रहधारीति भावः ।२९। 'संखादत्तिए'. संख्यादत्तिकः-संख्याप्रधाना दत्तिः संख्यादत्तिः, तया चरतीति संख्यादत्तिकः । दर्वीकटोरकादितोऽविच्छिन्नधारया या भिक्षा पतति सा, तथा-एकक्षेपरूपा च भिक्षा दत्तिरित्युच्यते ।३०। ‘से तं मिक्खायरिया' सैषा भिक्षाचर्या ॥ सू. ३० ॥ वाइए ) परिमितपिण्डपातिक-आधाकर्मादिक दोषों से रहित भक्तादिक यदि एक ही गृह से पर्याप्तमात्रा में मिल जाय तो लूँगा। २९ (सुद्धेसगिए ) शुद्धैषणिक-शंकादिक दोषों से रहित अथवा उद्गमादिक दोषों से वर्जित आहार लेने वाला । ३०-(संखादत्तिए) संख्यादत्तिक वह है जो इस प्रकार का संकल्प करता है कि दर्वी-कडछी एवं कटोरी आदि से अविच्छिन्न धारारूप में जो भिक्षा मेरे पात्र में पड़ जायगी उतनी ही भिक्षा में ग्रहण करूगा । (सेतं भिक्खायरिया) भिक्षाचर्या के ये ३० भेद हैं ॥ सू० ३०॥ माशे तो सश. (२८) (परिमियपिंडवाइए) परिभितपिपाति-माधाકર્મ આદિક દેથી રહિત ભક્તાદિક જે એક જ ઘેરથી પુરતા પ્રમાણમાં भणी य त ase. (२८) (सुद्धेसणिए) शुद्धष४ि-७। माहि होषाथी २डित मथ। माहिर होषाथी पति माडा२ देवावा. 3० (संखादत्तिए) સંખ્યાત્તિક તે છે કે જે એવો સંકલ્પ કરે છે કે દવ–કડછી તેમજ કટોરી આદિથી સતત ધારારૂપમાં જેટલી પણ ભિક્ષા મારા પાત્રમાં પડી જશે मेटी निक्षu ve. (से तं भिक्खायरिया) लिक्षायांना ३० ले छ. (सू. ३०)
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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