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________________ पीयूषवर्षिणी टीका. स्व. ३० भिक्षाचर्यातपोवर्णनम् २२१ २३, भिक्खालाभिए २४, अभिक्खालाभिए २५, अण्णगिलायए स्तस्माद् गृहस्थाद् यो लाभः स पृष्टलाभः, सोऽस्याऽस्तीति पृष्टलाभिकः ।२२। 'अपुट्ठलाभिए' अपृष्टलाभिकः-केनचिद् गृहस्थेनाऽपृष्टस्यैव साधोर्यस्तस्माद् गृहस्थाल्लाभः सोऽपृष्टलाभः, सोऽस्याऽस्तीत्यपृष्टलाभिकः ।२३। 'भिक्खालाभिए' भिक्षालाभिकः-कस्यचित् क्षेत्राद् गृहाद्वा याचित्वा गृहस्थेन समानीततुच्छबल्लचगककोद्रवादिकनिष्पादित आहारो भिक्षा, तस्या लाभोऽस्यास्तीति भिक्षालाभिकः ।२४। 'अभिक्खालाभिए' अभिक्षालाभिकः-- अयाचितलाभः-अभिक्षा, तस्या लाभोऽस्याऽस्तीत्यभिक्षालाभिकः ।२५। 'अण्णगिलायए' अन्नग्लायकः-अन्नेन-आहारेण विना ग्लायकः, रात्रिनिष्पन्नमन्नं ग्रहीष्यामीत्यवग्रहं कृत्वा भिक्षाचरक इत्यर्थः, पर्युषितान्नभिक्षाचरक इति भावः ।२६। 'ओवणिहिए' औपनिहितिकःउपनिहितं-कथश्चिद् गृहस्थेन स्वसमीपे समानीतमन्नादिकम् , तेन चरति इत्योपनिहितिकः महाराज! आप क्या चाहते हैं; तभी लूँगा । २३-(अपुटलाभिए) अपृष्टलाभिक दाता यदि नहीं पूछेगा तभी लूंगा। २४-(भिक्खालाभिए) भिक्षालाभिक-दाता गृहस्थ बाल चना एवं कोद्रव आदि अन्न को किसी के खेत से अथवा किसी के घर से मांग कर लाया होगा उस अन्न से निष्पादित आहारमें से यदि देगा तो लूंगा । २५ (अभिक्खालोमिए) अभिक्षालाभिक–दाता माँग कर जो पदार्थ नहीं लाया होगा उसमें से देगा तो लूंगा। २६-( अन्नगिलायए) अन्नग्लायक-जो अशनादिक रात्रिमें पकाया गया होगा वही लूंगा, अर्थात्-पर्युषित अन्न की भिक्षा लेने का अभिग्रह लेनेवाला संयमी जन अन्नग्लायक है। २७ (ओवणिहिए ) औपनिहितिक-गृहस्थ अपने समीप में किसी प्रकार से लाया गया अशनादिक में से देगा तो लूँगा । २८-( परिमियपिंड पूछ। ॐ भडारा ! २मापने शु छे त्यारे १४श. (२३) (अपुट्ठलाभिए) मटवाभिहातले नडि पूछ तो हैं सश. (२४) (भिक्खालाभिए) ભિક્ષાલાભિક–દાતા ગૃહસ્થ જે વાલ ચણા તેમજ કોદરા આદિ અનાજ કેઈના ખેતરથી અથવા કોઈને ઘેરથી માગીને લાવ્યા હોય તે અન્નથી બનાવેલા આહારभांथा मापशे तो सश.(२५) (अभिक्खालाभिए) समिक्षामि-हताये भांजाने २ पहाथ नही दाव्य य माथी माप aavA. (२६) (अनगिलायए) અન્નગ્લાયક–જે ભજન રાતમાં રાંધેલું હશે તે જ લઈશ-અર્થાત્ વાસી અન્નની मिक्षा मेवानी मलिना२ सयभीत मनसाय छे. (२७) (ओवणिहिए) ઔપનિહિતિક-ગૃહસ્થ પિતાની સમીપમાં કઈ પણ પ્રકારે લાવેલા ભેજનમાંથી
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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