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औपपातिकसूत्रे अप्पलोहे ४, अप्पसद्दे ५, अप्पकलहे ६. अप्पझंझे ७ ।से तं भावोमोयरिया । से तं ओमोयरिया। से किं तं भिक्खायरिया ? भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता; तं जहा-दव्वाभिग्गहचरए १, अल्पमानः-जात्याद्यभिमानराहित्यम् । 'अप्पमाए' अल्पमाया, 'अप्पलोहे' अल्पलोभः,'अप्पसद्दे' अल्पशब्दः,-'अप्पकलहे' अल्पकलहः कलहाभावः, 'अप्पझंझे अल्पझञ्झः= परस्परभेदोत्पादकवचनव्यापारो झञ्झः, तस्याभावः । ' से तं भावोमोयरिया' सैषा भावाऽवमोदरिका । ‘से तं ओमोयरिया' सैषाऽवमोदरिका ।
‘से किं तं भिक्खायरिया' अथ का सा भिक्षाचर्या ?, 'भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता' भिक्षाचर्या अनेकविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तद्यथा-दव्वाभिग्गहचरए' द्रव्याभिग्रहचरकः-द्रव्याऽऽश्रिताभिग्रहेण 'अमुकवस्तु ग्रहीष्यामि' इति रूपेण माणे अप्पमाए अप्पलोहे अप्पसद्दे अप्पकलहे अप्पझंझे ) मान को अल्प करना, माया को अल्प करना, लोभ को अल्प करना, शब्द को अल्प करना अर्थात् कम बोलना, कलह को अल्प करना-अभाव करना, झंझा को अर्थात्-गण में जिस वचन से छेद-भेद उत्पन्न होता है उस वचनका अल्प करना-अभाव करना, यहाँ पर 'अल्प ' शब्द अभावार्थक है । (से तं भावोमोयरिया) ये सभी भावावमोदरिका हैं । (से तं ओमोयरिया) यह अवमोदरिका तपका वर्णन संपूर्ण हुआ।
( से किं तं भिक्खायरिया ? ) भिक्षाचर्या क्या है-कितने तरह की है ?
उत्तर-(भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता) भिक्षाचर्या अनेक तरह की कही गई है । (तं जहा) जैसे (दव्याभिग्गहचरए, खेत्ताभिग्गचरए, कालाभिग्गहचरए भावाभिग्गहचरए) १ द्रव्याभिग्रहचरक-मुनि अभिग्रह लेता है कि मुझे जो अमुक वस्तु भिक्षा में
अप्पलोहे अप्पसद्दे अप्पकलहे अप्पझंझे) भान १८५(माछु)४२, माया म८५ ४२वी, લોભ અલ્પ કર, શબદ અલ્પ કરવા અર્થાત્ ઓછું બોલવું, કલહ (કંકાસ) ઓછા કરવા, ઝંઝા અર્થાત્ લોકોના સમૂહમાં જે વચનેથી છેદ–ભેદ ઉત્પન્ન थाय सेवा वयन नही मोसi, (से तं भावोमोयरिया) २३॥ या नावावभाहरि४। छ. (से तं ओमोयरिया ) २॥ अवमा हरितनु वन संपूर्ण यु: (से किं तं भिक्खायरिया) भिक्षाच्या शुछ-21 सतनी छ ? उत्तर (भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता) भिक्षायर्या अनेकतनी ४९वाय छे. (तं जहा) म (दव्वाभिग्गहचरए, खेत्ताभिग्गहचरए, कालाभिग्गहचरए, भावाभिग्गहचरए) १ द्रव्या