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पीयूषवर्षिणो-टीका. सू. २५ भगवदन्तेवासिवर्णनम्
१७५ वचंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलेोभा जिइंदिया जियणिद्दा जियपरीसहा जीवियास-मरण-भय-विप्पमुक्का वयअथवा-वर्चः तेजः प्रभावः-तद्वन्तो वर्चस्विनः । 'जसंसी' यशस्विनः तपःसंयमसमाराधनख्यातिप्राप्ताः। 'जियकाहा' जितक्रोधाः-जितः क्रोधे। यैस्ते जितक्रोधाः, क्रोधजयः-उदयप्राप्तक्रोधविफलीकरणतो ज्ञातव्यः। 'जियमाणा' जितमानाः, तत्र मानः-मन्यतेऽनेनेति मानः-अभिमानः-ज्ञानादिना अहमनुपमोऽस्मीत्यभिमानरूपः-गर्व इति यावत् । 'जियमाया' जितमायाःतत्र माया-परवञ्चनाभिप्रायेण शरीराकारनेपथ्यमनोवाक्कायकौटिल्यकरणरूपा, सा जिता यैस्ते तथा, उदयप्राप्तपरवञ्चनकर्मविफलीकारकाः, 'जियलोभा' जितलोभाः ‘जिईदिया' जितेन्द्रियाः 'जियणिद्दा' जितनिद्राः 'जियपरीसहा ' जितपरीषहाः 'जीवियास-मरण-भय-विप्पमुक्का' जीविताऽऽशा-मरण-भय-विनमुक्ताः-जीवितस्य-प्राणअथवा तपसंयमके प्रतापसे युक्त थे। (जसंसी) ये यशस्वी थे, अर्थात् तप और संयमकी आराधना से प्रसिद्धि पाये हुए थे। (जियकोहा) क्रोधको जिन्होंने जीत लिया था। (जियमाणा) मानको जिन्होंने दूर कर दिया था, अर्थात् “ मैं ज्ञानादिक गुणोंसे अनुपम हूँ" इस प्रकार अभिमानरूप गर्वको जिन्होंने परास्त कर दिया था। (जियमाया) दूसरोंको वंचन करनेके अभिप्रायसे वेष बनाना, एवं मन-वचन और कायको कुटिलतामें परिणत करना इसका नाम माया है; इस मायाका भी जिन्होंने अपनी शुभपरिणति द्वारा निवारण कर दिया था । (जियलोभा) इसी प्रकार लोभको भी जिन्होंने नष्ट कर दिया था। (जिइंदिया) इन्द्रियोंको जिन्होंने अच्छी तरह अपने वशमें कर रखा था । (जियणिदा जियपरीसहा) निद्रा और परीषहों को जिन्होंने जीत लिया था । (जिवियास-मरण-भय-विप्पमुक्का) जीनेकी आशा एवं मरणके प्रा ता. ( जसंसी) ते यशस्वी तत, अर्थात् त५ भने सयभनी माराधनाथी प्रसिद्धि पामेला उता. ( जियकोहा) ओध सभाणे त्यो छे. (जियमाणा) भान रसाये २ ४२ छ, अर्थात् ईशानाहि गुणेथी अनुपम छु' वा मनिभान३५ गवनेसास ५२शस्त ४ो छ. (जियमाया) બીજાની વંચના- છેતરપિંડી કરવાના હેતુથી વેષ બનાવવા તેમ જ મન વચનકાયાથી કુટિલતા કરવી તેનું નામ માયા છે. આ માયાનું પણ જેઓએ પિતાની शुभपरियतिथी निवा२९५ ४यु छ. (जियलोभा) तवी ४ रीत सामना ५५ रसाये नाश यो छ. (जिइंदिया) रेसाये सारीश द्रियाने पाताने १२ ४ बीधी ती. (जियणिद्दा जियपरीसहा) निद्रा मने परीषडाने मान्य ती