________________
११६
औपपातिकसूत्रे निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडगतुडिय-थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल जाव-कटु एवं वयासी ॥ सू. १९ ॥ निवेसेइ' मूर्द्धानं धरणितले निवेशयति-निजमस्तकं भूमिसंलग्नं करोति । 'निवेसित्ता' निवेश्य, 'ईसिं पच्चुण्णमइ ईषत प्रत्युन्नमति-अल्पनम्रीभूतकायो भवति, 'पच्चुण्णमित्ता' प्रत्युन्नम्य-अल्पनम्रीभूतकायो भूत्वा 'कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरई' कटकत्रुटितस्तम्भितौ भुजौ प्रतिसंहरति, कटकत्रुटिताभ्यां-कङ्कण-भुजरक्षकाभ्यांस्तम्भितौ-स्तम्भरूपौ यौ भुजौ तौ प्रतिसंहरति-उर्ध्वं नयति-उत्थापयतीत्यर्थः, 'पडिसाहरित्ता' प्रतिसंहृत्य-उत्थाप्य, 'करयल जाव कटु' करतल यावत् कृत्वा, अत्र-यावच्छब्देनपरिगृहीतं-परस्परं संमिलितं शिरआवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वेति बोध्यते, 'एवं वयासी' एवं= वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् ॥ सू० १९ ॥ मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ) तीनबार अपने मस्तक को जमीन पर झुकायाजमीन से माथे को लगाया । (निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ ) लगाने के बाद फिर ये थोडे से उठे, (पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ ) उसके पश्चात् इन्होंने अपने दोनों हाथों को कि जो कंकण एवं भुजरक्षक अलंकारों से स्तम्भित थे, उँचा किया, (पडिसाहरित्ता करयल-जाव-कटु एवं वयासी ) ऊँचे करने के बाद फिर ये मस्तक पर अंजलिपुट रख कर इस प्रकार बोले
भावार्थ-संदेशहर से प्रभु के आगमन की वार्ता सुनकर कोणिकराजा मारे अतिशय आनन्द के कारण उल्लसित हो गये । इस समाचार को सुनते ही ये रोमाञ्चित हो उठे। कमल के समान मुख आनन्दातिरेक से खिल उठा। नयनों ने पोताना भरतने भीन५२ नमायु-भीनने माथु मायु (निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ) २५ उया पछी तेसो ४२ ४या. (पच्चुण्णमित्ता कडगतुडिय-थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ) त्या२ ५छी तमामे पोताना भन्ने डाय કે જે કંકણ તેમજ કડાં ભુજરક્ષક વગેરે અલંકારોથી ખંભિત હતા તે
या ४ा. (पडिसाहरित्ता करयल जाव कट्ट एवं वयासी) या ४शने पछी તેઓએ મસ્તક ઉપર અંજલિપુટ રાખીને આ પ્રમાણે કહ્યું –
ભાવાર્થ–સંદેશવાહક દ્વારા પ્રભુના આગમનના સમાચાર સાંભળીને કેણિક રાજા અતિશય આનંદ થવાના કારણે ઉલ્લાસમાં આવી ગયા. એ સમાચાર સાંભળતા જ તેઓ રોમાંચિત થઈ ગયા. કમલની પેઠે મુખ આનંદના