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पीयूषवर्षिणी-टीका. सू. ११ पृथ्वी शिलापट्टवर्णनम्. णग-रूय-बूर-णवणीय-तूल-फरिसे सीहासणसंठिए पासाईए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे ॥ सू. १०॥
मूलम्-तत्थ णं चंपाए णयरीए कूणिए णामंराया परिवसइ ईहामृगादिपद्मलतान्तानां भक्तयः-रचनाविशेषाश्चित्राणि, ताभिश्चित्रः सुन्दरः । 'आईणगरुय-बूर-णवणीय-तूल-फरिसे' आजिनक-रूत-बूर-नवनीत-तूल--स्पर्शः । तत्र आजिनकंचर्ममयवस्त्रम्, रूतं-मृदुकार्पासविशेषः, बूरो-वृक्षविशेषः, नवनीतम्-'मक्खन' इति प्रसिद्धम्, तूलम्-अर्कतूलम् , एतेषां स्पर्श इव स्पर्शो यस्य शिलापट्टकस्य स आजिनकरूत-बूर-नवनीत-तूल-स्पर्श:-अत्यन्तकोमल इत्यर्थः, 'सीहासणसंठिए' सिंहासनसंस्थितः सिंहासनाकारः । 'पासाईए' प्रासादीयः-हृदयहर्षकः । 'दरिसणिज' दर्शनीयः-नेत्राहलादजनकः 'अभिरूवे' अभिरूपः, 'पडिरूवे' प्रतिरूपः ॥ सू. १०॥
___टीका—'तत्थ णं चंपाए णयरीए 'इत्यादि-तत्र खलु चम्पायां नगर्याम् , चमर, कुञ्जर हाथी, वनलता एवं पद्म-उता इन सबके चित्रों से यह सुन्दर था । ( आईणग-रुय-वर-गवणीय-तूल-फरिसे ) इसका स्पर्श आजिनक-चर्ममयवस्त्र, रूत-रुई, बूर-वृक्षविशेष, नवनीत-मक्खन और नूल–अर्कतूल इनके स्पर्श के समान था । तात्पर्य यह अत्यन्त कोमल स्पर्शवाला था। (सीहासनसंठिए ) इसका आकार सिंहासन जैसा था । [पासाईए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे ] हृदय को हर्ष देनेवाला, नेत्रोंको आह्लादित करनेवाला, एवं सुन्दर-आकृति संपन्न यह पृथिवीशिलापट्ट अपूर्व शोभासंपन्न था ।। सू० १० ॥
'तत्थ णं चंपाए णयरीए' इत्यादि,
( तत्थ ण चंपाए णयरीए ] उस चंपानगरी में ( कूणिए णामं राया) डतो. (आईणग-रूय-बूर-णवणीय-तूल-फरिसे) तेना २५श नियम भयवर, ३- पास, भू२-वृक्षविशेष, नवनीत-भाममने तूस-1ईतूर (२॥४ानु ૩) તેના જેવો હતે. મતલબ કે તે અત્યન્ત કોમળ સ્પર્શવાળો હતે (सीहासनसंठिए) तेन मा४।२ सिंहासन को खतो. (पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे) इत्यने उप ५माउन॥२, नेत्राने मामा६४।२४ तभ०४ सुंदर આકૃતિસંપન્ન આ પૃથિવીશિલાપટ્ટ અપૂર્વ શોભાયુક્ત હતા. (સૂ. ૧૦)
'तत्थ णं चंपाए णयरीए' त्याहि, (तत्थ णं चपाए णयरीए) ते पानगरीमा (कूणिए णामं राया) इणि