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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० २, अ० १, सुबाहुकुमार वर्णनम् हिमवन्महामलयमन्दरमहेन्द्रसारः-महाहिमवानिव-एतन्नामकवर्षधरपर्वतः क्षुल्लहिमवत्पर्वतापेक्षया उच्चत्वायामोद्वेध (गाम्भीर्य) विष्कम्भपरिक्षेपादिना रत्नमय पद्मवरवेदिकानानामणिरत्नमयकूटकल्पतरुश्रेणिप्रभृतिना क्षेत्रमर्यादाकारित्वेन च महान् तथाऽयमदीनशत्रुर्मेदिनीपतिरपि शेषराजापेक्षया जातिकुलनीतिन्यायादिना विपुलधनकनकरत्नमणिमौक्तिकशङ्खशिलप्रवाल-राज्य-राष्ट्रबल-वाहन-कोश-कोष्ठागारादिना जातिकुलधर्ममर्यादाकारित्वेन च महान् वरीवर्ति, तथा सर्वजनमनोमोदकतया विस्तृतयश कीर्तिरूपसुगन्धतया च मलयवत्, औदार्यधैर्यगाम्भीर्यादिगुणैमन्दरवत्-मेरुवत्, भूपन्दे दिव्यर्द्धिदिव्यद्युति-दिव्यप्रभावादिभिर्महेन्द्रवत् महेन्द्रा भिधपर्वतविशेषवत् सारः=श्रेष्ठः । 'तस्स णं अदीणसत्तुस्स रणो' तस्य खलु से एवं परिक्षेप आदि से तथा रत्नमय पद्मवर वेदिका से, नानामणियों एवं रत्नो के कूट से, और कल्पतरुओं की श्रेणी आदि से क्षेत्र की मर्यादा करने वाला होने के कारण महान माना जाता है, उसी तरह यह अदीनशत्रु राजा भी अन्य राजाओं की अपेक्षा जाति कुल, नीति एवं न्याय आदि से, तथा विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, राज्य, सैन्य, राष्ट्र, सबारी कोश एवं कोष्ठागार, इत्यादि द्वारा जाति और कुलकी मर्यादा करने वाला होने के कारण महान था । तथा-सर्वजनों के मनको आनंदकारी होने से और विस्तृत यश एवं कीर्तिरूप सौरभ से सुरभित होने से मलय पर्वत के समान था, तथा औदार्य धैर्य गाम्भीर्यादि गुणों से मेरु पर्वत के समान था । अन्य राजाओं में दिव्य ऋद्धि से, दिव्यद्युति से, और दिव्य प्रभाव आदि से महेन्द्र पर्वत के समान श्रेष्ठ माना जाता था । 'तस्सणं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे પરિક્ષેપ આદિથી તથા રત્નમય પદ્વવર વેદિકાથી. નાના મણિઓ અર્થત રત્નના કૂટથી અને કલ્પતરૂઓની શ્રેણી આદિથી, ક્ષેત્રની મર્યાદા કરનાર હોવાથી મેટે માનવામાં આવે છે, તે જ પ્રમાણે, તે અદીનશત્રુ રાજા પણ અન્ય-બીજા રાજાઓના મુકાબલે नति, स, नीति, मने न्याय माहिम, तथा विधुत धन, धन, २न, भ, मोति, शम, शिक्षा, प्राa, lorय, राष्ट्र, सैन्य, सवारी, शि, भने ति३५ सुपासणी सुपासपूर्ण पाथी भनय पतिना समान ती, तथा St२di. 'धीरता='nel२ता આદિ ગુણેમાં મેરૂ પર્વત સમાન હતો. અન્ય રાજાઓમાં દિવ્ય દ્ધિથી દિવ્યદ્યતિથી અને દિવ્યપ્રભાવ આદિથી મહેન્દ્ર પર્વતના સમાન શ્રેષ્ઠ માનવામાં આવતું હતું. 'तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था' શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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