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________________ विपाकश्रुते णस्स' दशमस्याध्ययनस्य 'अयमढे पण्णत्ते' अयमर्थः प्रज्ञप्तः । श्रीजम्बूस्वामी माह-'सेवं भंते ! सेवं भंते !' तदेवं हे भदन्त ! तदेवं हे भदन्त ! यद् भगवता मम प्रतिबोधितं तत्सर्व तदेव-तथैवास्ति ।। मू० ५ ॥ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगवल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मायक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त- जैन शास्त्राचार्य '-पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालव्रतिविरचितायां विपाकश्रुते दुःखविपाकनामक-प्रथमश्रुतस्कन्धस्य विपाकचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायाम् 'अंजू' नामक-दशममध्ययनं सम्पूर्णम् ॥ १ । ॥ १० ॥ ॥ इति श्रीविषाकश्रुतस्य दुःखविपाकारव्यः प्रथमः श्रुतस्कन्धः सम्पूर्णः ॥१॥ मस्स अज्झयणस्स अयमटे पण्णत्ते । सेवं भंते ! सेवं भंते !' सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी से कह रहे हैं-कि हे जंबू ! श्रमण भगवान महावीर प्रभुने कि जो सिद्धिस्थान को प्राप्त कर चुके हैं दुःखविपाक के इस दशर्व अध्ययन का यह भाव प्रतिपादित किया है, 'त्तिबेमि' जसा भगवान से मैने सुना है वैसा ही तुम से कहा है ॥ सू०५॥ ॥ इति श्री विपाकश्रुतके दुःखविपाकनामक प्रथमश्रुतस्कन्ध की 'विपाकचन्द्रिका' टीका के हिन्दी अनुवाद में 'अंजू' नामक दसवां अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १-१०॥ इति श्रीविपाकश्रुतका 'दुःखविपाक'नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध संपूर्ण ॥१॥ पण्णने । सेवं भंते ! सेवं भंते ! सुधा स्वामी भूस्वामी ४ छे 3-3 જબૂ! શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પ્રભુ, કે જે સિદ્ધિસ્થાનને પ્રાપ્ત કરી ચુક્યા છે તેમણે भावपान मा समा अध्ययनमा भाव २ प्रतिपाइन रेसा छ, 'त्तिबेमि' ते रवी રીતે મેં ભગવાન પાસેથી સાંભળ્યા છે. તેવાજ તમને કહ્યા છે. જે સૂ૦ ૫ છે घति विश्रुतना दुःखविपाक' नामना प्रथम श्रुत२४ धनी 'विपाकचन्द्रिका' ना गुती अनुवाईमा 'अञ्जू' नाम भु અધ્યયન સપૂર્ણ છે ૧-૧૦ | ઇતિ શ્રી વિપાકમૃતનું દુઃખવિપાક નામક પ્રથમશ્રુતસ્કંધ સંપૂર્ણ છે ૧ | શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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