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________________ ६८२ विपाकश्रुते ॥ मूलम् ॥ तए णं से पूसणंदी राया मुहत्तरेणं आसत्थे समाणे बहुहि२ राईसरजाव सत्थवाहेहि मित्त जाव परियणेण य सद्धिं रोयमाणे३ सिरीए देवीए महया इढि० णीहरणं करेइ, करित्ता आसुरुत्ते देवदत्तं देवि पुरिसेहि गिण्हावेइ, गिहावित्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ । एवं खल गोयमा ! देवदत्ता देवी पुरापोराणाणं जाव विहरइ ॥ सू० २० ॥ टीका 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से' ततः खलु स 'पूसणंदी राया' पुष्पनन्दी राजा 'मुहुत्तंतरेण मुहूर्तान्तरेण-किञ्चित्कालेन 'आसत्थे समाणे' आस्वस्था लब्धचेतनः सन् 'बहुर्हि' बहुभिः 'राईसर जाव सत्थवाहेहि' राजेश्वरयावत्सार्थवाह:-राजेश्वरतलबरमाडम्बिककौटुम्बिकेभ्यश्रेष्ठिसेनापतिसार्थवाहैः मित्त जाव परियणेण य' मित्रयावत्परिजनेन-मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनेन च 'सद्धिं' सार्ध 'रोयमाणे३' रुदन् ‘कंदमाणे ' क्रन्दन् उच्चैः-स्वरेण ' हा मातः ? क्व गतासि ?' इत्यादि, 'विलवनाणे' विलपन्='हे मातः ! तव चंपक वृक्ष की तरह धस शब्द पूर्वक सर्वाङ्गों सहित-एकदम जमीन पर गिर गया ॥ सू० १९ ॥ 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से' इसके बाद से पूसणंदी राया' उस पुष्पनंदी राजाने 'मुहत्तरेणं' कुछ कालके पश्चात् 'आसत्थे समाणे सचेत होकर 'बहुहिँ राईसर जाव सत्यवाहेहिं मित्त जाच परियणेण य' बहुत से राजेश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति एवं सार्थवाहों तथा मित्र से लेकर परिजनों के 'सद्धिं' साथ 'रोयमाणे३' मिलकर रोते हुए आक्रन्दन करते हुए एवं 'हे मातः ! तुम आज हम को તે પ્રમાણે ધસ શબ્દપૂર્વક સર્વાગ સહિત એકદમ જમીન પર પડીગ યા. (સૂ) ૧૯) 'तए णं से' त्याkि. 'तए णं' ते पछी 'से पूसणंदी राया' ते पन मे 'मुहुत्तरेणं' थोडा समय गया पछी ' आसत्थे समाणे' सन्यत छन 'बहुहिं राईसर जाव सत्यवाहेहि मित्त जाव परियणेण य' धejipe A२३२, तप२, Hisfa. . ४ि, ४०य श्रेष्टि, सेनापति, सार्थवाडी तथा भित्रयी परिनानी 'सद्धि' साथै 'रोयमाणे३' मी शता-३४न ४२तमाहन ४२॥ ५४ भात ! શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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