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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ९, देवदत्तावर्णनम् ततः खलु स पुष्पनन्दिकुमारः 'देवदत्ताए भारियाए सद्धिं' देवदत्तया भार्यया सार्धम् 'उपि' उपरि 'पासायवरगए' प्रासादवरगतः 'फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहि' स्फुटयमानर्मदङ्गमस्तकैः वाद्यमानैमृदङ्गैः 'बत्तीसइबद्धनाडएहि' द्वात्रिंशद्बद्धनाटकैद्वात्रिंशद्वद्धैः द्वात्रिंशत्प्रकारकैः-द्वात्रिंशत्पात्रनिबद्धैश्च नाटकैः ‘उवगिज्जमाणे२'उपगीयमान उपगीयमानः 'जाव' यावत्-उपलाल्यमानः२ शब्दस्पर्शरसरूपगन्धरूपान् विपुलान् मानुष्यकान कामभोगान् प्रत्यनुभवन् 'बिहरइ' विहरति । 'तए णं से वेसमणे राया' ततः खलु स वैश्रवणो राजा 'अण्णया कयाई' अन्यदा कदाचित् 'कालधम्मुणा संजुत्ते' कालधर्मेण संयुक्तः मृतः। 'णीहरणं' निर्हरणं= श्मशान भूमौ नयनं स्वराज्योचितऋद्धिसत्कारसमुदयेन संपादितम् । 'जाव' यावत्-लौकिकानि मरणकृत्यानि कृत्वा कालेनाल्पशोको जातः। 'राया जाए' राजा जाता=पितुः पदं नृपासनमारूढः, राज्याभिषेकं प्राप्त इत्यर्थः। 'तए णं' 'देयदत्ताए भारियाए' देवदत्ता भार्या के साथ 'उप्पिं पासायवरगए' ऊपर प्रासाद पर रह कर 'फुटमाणेहिं मुइंगमत्थएहि' बज रहे हैं श्रेष्ठ मृदंग जिन में ऐसे 'वत्तीसइबद्धनाडएहि' बत्तीस प्रकार के नाटकों द्वारा कि जो भिन्न२ बत्तीस प्रकार के पात्रों द्वारा खेले जाते थे 'उवगिज्जमाणे२' प्रशंशित होता हुआ 'जाव विहरई' शब्द-रूप-गंध-रस-और स्पर्शविषयक विपुल मनुष्यसंबंधी कामभोगों को भोगने लगा। 'तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते किसी एक समय की बात है कि वैश्रवण राजा कालधर्म को प्राप्त हुआ। णीहरणं जाव राया जाए' पुष्पनंदिकुमार ने अपने पिता की श्मशानयात्रा खूब गाजे बाजे के साथ निकाली। मृत्यु अवसर के समस्त कृत्यों से निश्चिन्त होकर अब वह स्वयं राजा बन गया । 'तए णं से पूसणदी राया सिरीदेवीए भारियाए ' हेहता भार्यानी साथे 'उप्पि पासायवरगए ' भाडेसना ७५२न भागमा २हीने 'फुट्टमाणेहिं मुइंगमस्थएहिं ' भा श्रेष्ठ भृह वासी २॥ छे. थे। 'बत्तीसइबद्धनाडएहि ' पत्री प्रारना नाटीद्वा२७२पामा मत भिन्न-भिन्न अत्रीस प्राश्ना पात्री द्वारा नाट मसातुडतु' उवगिज्जमाणे२' प्रशासित पनीने 'जाव विहरइ' श६, ३५, गंध, २४ भने २५॥ विषय qिye मनुष्य संधी मिसागाने मग साया 'तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते 'मे सभयनी वात छे , वैश्रवण २० सयम (भ२५) पाभी गया ' णीहरणं जाव राया जाए ०५नही सुमारे पोताना पितानी स्मशान યાત્રા ખૂબ ગાજતે-વાજતે કાઢી મૃત્યુ પછીના સમસ્ત કાર્યો કરી નિશ્ચિત્ત બનીને हवे पछी पोते २० मनी गया. 'तए णं से पूसणंदी राया सिरीदेवीए मायाए શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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