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________________ ६२४ विपाकश्रुते नादि कृत्वा भगवदाज्ञां गृहीत्वा 'छटुक्खमणपारणगंसि' षष्ठक्षपणपारणके तहेव' तथैव-प्रक्तिवदेव 'जाव' यावत-रोहितके नगरे भिक्षोमटन् 'रायमग्गं' राजमार्गम् 'ओगाढे' अवगाहः समागतः। तत्र 'हत्थी' हस्तिनः 'आसे' अश्वान् 'पुरिसे' पुरुषांश्च पासइ' पश्यति । तेसिं पुरिसाणं' तेषां पुरुषाणां 'मज्झगयं' मध्यगतां 'पासइ' पश्यति । कां पश्यतीत्याह-- 'एगं इत्थियं' एकां स्त्रियम् । कीदृशीम् 'अवउडगबंधणं' अवकोटकबन्धनां व्याख्या प्रागुक्ता, 'उकित्तकण्णणासं' उत्कृत्तकर्णनासां 'जाव' यावत्-'मूले' शुले-शूलायां 'भिज्जमाणं' भिद्यमानां 'पासई' पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा तस्य भगवतो गौतमस्य 'इमे' अयं वक्ष्यमाणः अझथिए०४' आध्यात्मिकः ४ आत्मनि मनोगतः-सङ्कल्पः 'तहेव' तथैव पूर्वोक्तप्रकार एव समुदपद्यत, 'णिग्गए' निर्गतः सामुदानिकों भिक्षां गृहीत्वा भगवान महावीर के बडे शिष्य गौतम स्वामी 'छट्टक्खमणपारणगंसि' स्वाध्याय ध्यान एवं प्रतिलेखनादिक क्रिया समाप्त कर भगवान की आज्ञा लेकर छठ के पारणा के निमित्त 'तहेव जाव रायमग्गं ओगाढे' पूर्वोक्त विधि के अनुसार रोहितक नगर के ऊंच-नीचादि कुलों में भिक्षा के लिये फिरते हुए राजमार्ग में आये । 'हत्थी आसे पुरिसे पासई' वहां उन्होंने अनेक हाथियों, घोडों और पुरुषों को देखा । साथ में 'तसिं पुरिसाणं मझगयं पासइ एगं इत्थियं अवउडग-बंधणं उक्कित्तकण्णणासं जाव मूले भिजमाणं पासइ' उन पुरुषों के बीच में उन्होंने एक ऐसी स्त्री देखी कि जिसके दोनो हाथ पीछे की ओर करके बंधे हुए थे । नाक और कान जिसके दोनों कटे हुए थे। शूली पर जो चढी हुई थी। 'पासित्ता इमे अज्झन्थिए४' ऐसी कष्ट दशा में पडे हुई स्त्री को देखकर भगवान गौतम के चित्त में ये वक्ष्यमाण संकल्प 'तहेव' पूर्व की 'छ?क्खमणपारणगंसि' स्याय, ध्यान भने प्रतिसे मनाlts foया पूरी रीने भगवाननी माजा ने छठना पा२१॥ निभित्ते, 'तहेव जाव रायमग्गं ओगाढे' આગળ કહેવામાં આવી છે તે વિધિ મુજબ રોહિતક નગરમાં ઊંચ-નીચાદિક કુલેમાં भिक्षा माटे ५२त। ३२ता १४ मा ५२ भाव्या. ' हत्थी आसे पुरिसे पासइ' त्यां तेभो भने हाथीमा, घाम। मने पुरुषाने या साथे 'तेसिं पुरिसाणं मज्ज्ञगयं पासइ एगं इत्थियं अवउडगबंधणं उक्त्तिककण्णणासं जाव मूले भिज्जामाणं पासई' તે પુરુષની વચમાં એક એવી સ્ત્રીને જોઈ કે જેના બન્ને હાથ પાછળથી બાંધેલા હતા. ना मने अन ना अपेक्षा तi मत २ शूटी ५२ यी ती. 'पासित्ता इमे अज्झथिए४' मेवी ४८ शाम ५ ते श्रीनधन, भगवान गौतमना वित्तम શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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