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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. १, अ. ८, शौर्यदत्तवर्णनम् ५९५ कल्पितानि-कर्तरीकर्तितानि ‘ करेइ' करोति, कीदृशानि करोतीति दर्शयतितं जहा इत्यादि। 'तं जहा' तद्यथा तानि यथा-'सण्हखडियाणि य' श्लक्ष्णखण्डितानि च-मूक्ष्मरूपेण खण्डीकृतानि 'वट्टखंडियाणि य वृत्तखण्डितानि च-गोलाकारेण खण्डीकृतानि 'दीहखंडियाणि य' दीर्घरवण्डितानि च लम्बरुपेणखण्डीकृतानि 'रहस्सरखंडियाणि य' इस्वखण्डितानि च लघुरूपेण खण्डीकृतानि । तथा 'हिमपक्काणि य' हिमपक्कानि च 'हिम' 'बर्फ' इति भाषापसिद्धम् 'जम्मपक्कागि य' जन्मपकान=स्वयमेव पक्कानि 'घम्मपक्काणि य' धर्मपक्कानि=सूर्यातपपकानि 'मारुयपक्काणि य' मारुतपक्कानि च 'कालाणि य' कालानि च कालपक्कानि 'हेरंगाणि य' हेरङ्गाणि च-मत्स्यमांसेन पक्कानि 'महिहाणि य' महिष्ठानि च-तक्रसंसृष्टानि 'आमलरसियाणि य आमलकरसितानि च आमलकरससंस्कृतानि 'मुद्दियारसियाणि य' मृद्वीकारसितानि च द्राक्षारससंस्कृतानि 'कविट्ठरसियाणि य' मंसाई कप्पणीकप्पियाई करेइ तं जहा-सण्हखंडियाणि य....उवक्खडावेई' तब वह श्रीक रसोइया उन समस्त प्राप्त जलचर थलचर और खेचर संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों को मार कर उनके मांस के कैंची से टुकडे२ कर डालता। उन में कइ ट्रकडे सूक्ष्म होते कई गोल२, कई लम्बे२ और कई ऐसे भी होते जो छोटे२ थे। 'हिमपक्काणि य' इन में कितनेक को वह वर्फ में डाल कर पकाता, 'जम्मपक्काणि य' कितनेक को वह अलग रख देता जो स्वतःही पक जाते। "घम्मपक्काणि य कितनेक को वह धूप में रखकर शुष्क कर लेता, 'मारुयपक्काणि य' कितनेक को हवा के द्वारा पका लेता, 'कालाणि य' कितनेक को समयानुसार पकाता, कितनेक को वह मछलियों के मांस में कितनेक को मठा में-रायता के रूप में कितनेक को आंबले के रस में, कितनेक को कपित्थ-कैथ के रस में, करेइ तं जहा-सण्हखंडियाणि य....उवक्खडावेई' सुधी ते श्री साध्या ते भणेसा તમામ જલચર, થલચર, અને ખેચર સંજ્ઞી પાંચ ઈન્દ્રિયવાળાં તિર્યંચ જીવને મારીને તેના માંસના કાતરથી ટુકડા કરી નાંખતે, તેમાં કેટલાક ટુકડા નાના થતા, કેટલાક ગોળ, લાંબા અને કેટલાક એવા પણ થતા હતા કે તદ્દન નાના થતા હતા. તેમાંના 'हिमपक्काणि य' माने १२३मा शभान ५४पता, 'जम्मपक्काणि य' टमाने । रामपामा सावता मन सेभ स्वाभावि रीते पाहता, 'घम्मपक्काणि य' टमा ने ता५- तमा भी सुवी सेता, "मारुयपक्काणि य' माने हवावायुद्धा२॥ ५४वी सेता, 'कालाणिय साउने समय प्रमाणे सुवी खेता. माने તે માછલીઓના માસમાં પકવતા, કેટલાકને છાસમાં રાયતાના રૂપમાં, કેટલાકને શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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