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________________ विपाकश्रुते पुष्पगन्धमाल्यालङ्कारं 'ठवेइ' स्थापयति, 'ठवित्ता' स्थापयित्वा 'पुक्खरिणी' पुष्करिणीम् , 'ओगाहेइ' अवगाहतेप्रविशति, 'ओगाहित्ता' अवगाह्य प्रविश्य 'जलमज्जणं' जलमज्जन-जल डनं 'करेइ' करोति, 'करित्ता' कृत्वा 'जलकीडं' जलक्रीडांजललीलां करेइ' करोति, 'करित्ता' कृत्वा 'पहाया' स्नाता 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता' कृतकौतुकमङ्गलमायश्चित्ता 'उल्लपडसाडिया' आईपटशाटिका-आर्द्रवस्त्रेव, 'पुक्खरिणी' पुष्करिणी 'पच्चुत्तरइ' प्रत्युत्तरति-ततो बहिनिस्सरति, 'पच्चुत्तरित्ता' प्रत्युत्तीर्य-बहिनिस्सृत्य 'तं' तं-पूर्वस्थापितं 'पुप्फ०' पुष्पगन्धमाल्यालङ्कारं 'गिण्हइ' गृह्णाति, 'गिहित्ता' गृहीत्वा 'जेणेव' यत्रैव 'उंबरदत्तस्स जक्खस्स' उदुम्बरदत्तस्य यक्षस्य 'जक्खाययणे' यक्षायतनं यक्षस्थानं 'तेणेव' तेनैव 'उवागच्छइ ' उपागच्छति, “उवागच्छित्ता' उपागत्य 'उंबरदत्तस्स जक्खस्स' उदुम्बरदत्तस्य यक्षस्य 'आलोए' आलोके दर्शने सति 'ठवित्ता पुक्खरिणी ओगाहेइ' रख कर वह फिर उस पुष्करिणी में स्नान के निमित्त प्रविष्ट हुई। 'ओगाहित्ता' घुस कर उसने 'जलमज्जणं करेइ' उस के जल में डुबकी लगाई । 'करित्ता 'जलकीडं करेइ' डुबकी लगाने के बाद फिर उसने उसमें जलक्रीडा की। 'करित्ता प्रहाया' जल क्रीडा कर उसने स्नान किया, इस प्रकार जब वह अच्छी तरह स्नान कर चुकी एवं 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता' कौतुक, मंगल और प्रायश्चित कर्म से जब निपट चुकी तव 'उल्लपडसाडिया' गीली साडी पहिरी हुई ही वह 'पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ' पुष्करिणी से बाहर निकली। पच्चुतरित्ता तं पुप्फ गिण्हई' और निकल कर उसने वे तट पर रखे हुए पुष्प आदि लिये। गिण्हित्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ' उठा कर वह उस ओर चली कि जिस ओर उस यक्ष का यक्षायतन था। 'ठवित्ता पुक्खदिणी ओगाहेइ' राभान तेरे पछी ४०४२६ मा स्नान ४२१। भाटे प्रवेश ध्यो, 'ओगाहित्ता' प्रवेश प्रशने तो 'जलमज्जणं करेइ' तेसमा डमडी भारी 'करित्ता जलकीडं करेई' मने तो ते पाभ rat ४N, "करित्ता हाया' જલક્રીડા કરીને પછી તેણે સ્નાન કર્યું, આ પ્રમાણે તે જ્યારે સારી રીતે સ્નાન કરી રહી ते पछी 'कयकोउय मंगलपायच्छित्ता' ौतु, भगत भने प्रायश्चित्त भथा न्यारे निवृत्त या त्यारे 'उल्लपडसाडिया' हीदी (Monalel) साड पडेशन ते 'पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ' धुरिणाथी पहा नीती 'पच्चुत्तरित्ता तं पुप्फ० गिण्हइ' भने नीजान त sist ५२ रामेस पुष्पो, माहिश यु तु ते सीधु 'गिहित्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइस शने यक्षना स्थान त२३ साली 'उवागच्छित्ता' यक्षना स्थानमा पाडयाने तणे उंबरदत्तस्स શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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