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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु० १, अ० ६, नन्दिषेणवर्णनम् ५२९ श्रीसुधर्मा स्वामी प्राह-एवं खलु' इत्यादि । एवं खलु 'णिक्खेवो' निक्षेप:= समाप्तिवाक्यं तथाहि-हे जम्बूः .! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत् मोक्ष प्राप्तेन 'छट्ठस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्तेत्ति बेमि' षष्ठस्याध्ययनस्यायमर्थः प्रझप्तः, इति ब्रवीमि-व्याख्या पूर्ववत् ।। सू० ९ ॥ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मायक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त- जैन-शास्त्राचार्य '-पदभूपित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालव्रतिविरचितायां विपाकश्रुते दुःखविपाकनामक-प्रथमश्रुतस्क न्धस्य विपाकचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायाम षष्ठमध्ययनं सम्पूर्णम् ॥१। ६ ॥ से समस्त ज्ञेय पदार्थ का ज्ञाता होगा। कर्मबंध से सदा के लिये छूटकारा पा जायगा। इसे वहां अव्यावाध अनंत सुख की प्राप्ति होगी मुक्ति अवस्थामें इसके सम्पूर्ण दुःखोंका आत्यन्तिक अभाव हो जायगा। 'एवं खलु निक्खेवो' भगवान श्रीमहावीर प्रभुने 'छट्ठस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते तिबेमि' इस छठे अध्ययन का यह भाव फरमाया है। ॥ सू०९॥ ॥ इति श्री विपाकश्रुतके दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध की 'विपाकचन्द्रिका' टीका के हिन्दी अनुवाद में ' नन्दिषेण ' नामक छट्ठा अध्ययन सम्पूर्ण ॥१-६॥ પદાર્થના જ્ઞાતા થશે. કર્મબંધનથી હમેશાં માટે છુટી જશે, એને ત્યાં આગળ આવ્યાબાધ અનંત સુખની પ્રાપ્તિ થશે, મુક્તિની અવસ્થામાં તેના તમામ દુઃખને આત્યંતિક ममा ४ थे एवं खलु निक्खेवो' भगवान महावीर प्रसुमे 'छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमद्देपण्णत्ते त्ति बेमि' मा छ । अध्ययनना या प्रमाणे भाव ह्या छ (१०८) धति विपाश्रुतना 'दुःखविपाक' नामना प्रथम श्रुतधनी 'विपाकचन्द्रिका' 2011 शुभराती मनुवाहमा 'नन्दिषेण' नाम छ અધ્યયન સપૂર્ણ છે. ૧-૬ શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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