SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ६, नन्दिषेणवर्णनम् ५१७ बहुप्रतिपूर्णेषु 'जाव' यावत ' दारगं पयाया' दारकं प्रजाता = प्रजनितवती । 'तए णं' ततः खलु ' तस्स दारगस्स' तस्य दारकस्य 'अम्मापियरो' अम्बापितरौ 'णिवत्ते एगारसे दिवसे' निवृत्ते एकादशे दिवसे 'संपत्ते बारसाहे ' संप्राप्ते द्वादशाहे 'इमं एयारूवं' इदमेत पं 'नामधेज्जं' नामधेयं 'करेंति' कुरुतः 'होउ णं' भवतु खलु 'अहं' अस्माकं 'दारगे' दारकः = पुत्र: 'नंदिसेणे नामेणं' नन्दिषेणो नाम्ना नन्दिषेण - इति नामकः । 'तए णं से' ततः खलु सः 'नंदि - सेणे कुमारे' नन्दिषेणः कुमारः 'पंचधाई परिवुडे' पञ्चधात्रीपरिवृतः 'जाव परिवड्ढr' यावत् परिवर्धते । 'तए णं से' ततः खलु सः 'नंदिसेणे कुमारे' नन्दिषेणः : कुमारः 'उम्मुकबालभावे ' उन्मुक्तबालभावः 'जाव विहरइ' यावत् विहरति = आस्ते | 'जाव जुवराया जाए यावि होत्था' यावत् युवराजो जातबंधुसिरी देवी व मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया' गर्भ के ९ माह जब ठीक २ पूर्ण हो चुके तब बंधुश्री ने एक पुत्र को जन्म दिया । 'तए णं तस्स दारगस्स' जन्म होने पर इस बालक के 'अम्मापियरो' माता पिता ने 'णिव्वत्ते एगारसे दिवसे संपत्ते बारसाहे' ग्यारह दिनों के निकल चुकने पर १२ वें दिन के प्रारंभ होते ही 'इमं एयारूवं णामधेज्जं करेंति' इस अपने पुत्रका इस प्रकार नामसंस्कार किया । होउ णं अहं दारगे नंदिसेणे नामेणं' कि हमारा यह पुत्र 'नंदिषेण' इस नाम से प्रसिद्ध होओ। 'तर णं से नंदिसेणेकुमारे पंचधाई परिबुडे जाव परिवड्डू' तत्पश्चात् वह नंदिसेनकुमार पांच धाइयों से परिवृत होकर वर्धित होने लगा 'तए णं से नंदिसेणे कुमारे उम्मुकबालभावे जाव विहरह' वह नंदिषेण कुमार बाल्यकाल को उल्लंघन कर जब तरुणावस्था को प्राप्त वहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारंगं पयाया' गर्भना नव भास जरामर यूरा था गया त्यारै मधुश्री मे मे पुत्रनो कन्भ आयो 'तर णं तस्स दारगस्स' जन्म या पछी ते खाणउना 'अम्मापियरो " भाता-पिता 'णिव्वत्ते एगार से दिवसे संपत्ते बारसाहे ' अगियार ११ दिवस पूरा थया पछी मारमा १२भां द्विव सना प्रारंभमां भेटले यारमे हिवसे 'इमं एयारूत्रं णामधेज्जं करेंति ' पोताना मे पुत्रना या प्रमाणे नामसंस्४२ र्या 'होउ णं अम्हं दारगे नंदिसेणे नामेणं ' } आ अभारी पुत्र ‘नंदिषेण ' मा नाभथी प्रसिद्ध थाओ ! 'तए णं से णं दिसेणे कुमारे पंचधाई परिबुडे जाव परिवडूइ ' त्यार पछी ते नंदीसेनकुमार पांथ ધાઈએથી રક્ષિત થઈ વધવા લાગ્યું. तर णं से नंदिसेणे कुमारे उमुक्कवाल• શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy